Sunday, September 28, 2014

रघुनाथ मंदिर –जम्मू

       कुछे दिन पाहिले जम्मू के रघुनाथ मंदिर जाए के सौभाग्य मिलल | इ रघुनाथ मंदिर उत्तर भारत के सबसे बडहन मंदिर परिसर में से एगो मानन जाला | हलाकि भगवान राम जी एकर अधिष्ठाता देवता हवे पर एह मंदिर में आप एक साथ ३३ करोड देवी देवता के दर्शन कर सकेली | भगवान राम के ही रघुनाथ कहल जला एही से एकर नाम भी रघुनाथ मंदिर पड गईल | एह मदिर के बनवले के काम शुरू भइल १८३५ में जम्मू के ओ समय के महाराज श्रीमान गुलाब सिंह जी के द्वारा | और १८६० में जम्मू महाराज श्रीमान रणवीर सिंह जी एके पूरा करावनी और मदिर के पहिला ट्रस्टी भी बननी | इ मंदिर अपने आप में अनोखा और कला के अद्भुत मिशाल हवे | मंदिर के भीतर एकरे दीवार पर तीन तरफ से सोने के परत चढल बाटे जेकरे वजह से एकरे सुंदरता में चार चाँद लाग जाला | इहा मुख्य मंदिर के चारों ओर कई मंदिर स्थापित बाटे जेकर संबंध रामायण काल के देवी-देवताओ से बाटे | जम्मू के ठीक बीच में स्थापित एह मंदिर के रास्ता रेजिडेंसी रोड से होके जाला और एकरे चारों ओर मंदिर के ही नाम पर रघुनाथ बाजार फइलल बाटे | एह मदिर के देखते ही श्रद्धालु आश्चर्यचकित हो जाने कहे से की इ बा ही एतना कलात्मक |


रघुनाथ मंदिर


       मुख्य मंदिर पर पहुचते ही आपके कई और मंदिरन  के याद आ जाइ खास कर के काशी-विश्वनाथ मंदिर के | जइसे काशी-विश्वनाथ मंदिर में पंडा कुल अपना जाल में श्रद्धालुअन के श्लोक के उच्चारण करत और आपन ज्ञान बघारत फसावे के कोशिश करे न सब | वैसे ही इहा के भी पुजारी श्रद्धालुअन के सामने अक्षत फूल रोली और चन्दन से सजावल थरिया में सौ -पाच सौ के नोट रख के दान और दक्षिणा देवे खातिर एक तरह से उकसावे न सब | आप परिवार के पाच लोगन के साथे जाई चाहे दोस्तन के साथे आपके साथे गइल हर एक के दक्षिणा देवे के दबाव डालल जाई |

       पर एह सब से परे जब तक आप मंदिर के प्रांगण में रहब तब तक बहुत ही सुकून और शांति के अहसास होई | एह लिए हमार मानल बा की अगर आप जम्मू जात बानी त एक बार जरुर एह मंदिर में भगवन राम के दर्शन करी और जीवन के धन्य बनाई |

Saturday, September 27, 2014

बात पर बात होता - मनोज कुमार सिंह 'भावुक'

बात पर बात होता बात ओराते नइखे
कवनो दिक्कत के समाधान भेंटाते नइखे

भोर के आस में जे बूढ़ भइल, सोचत बा
मर गइल का बा सुरुज रात ई जाते नइखे

लोग सिखले बा बजावे के सिरिफ ताली का
सामने जुल्म के अब मुठ्ठी बन्हाते नइखे

कान में खोंट भरल बा तबे तs केहू के
कवनो अलचार के आवाज़ सुनाते नइखे

ओद काठी बा, हवा तेज बा,किस्मत देखीं
तेल भरले बा, दिया-बाती बराते नइखे

मन के धृतराष्ट्र के आँखिन से सभे देखत बा
भीम असली ह कि लोहा के, चिन्हाते नइखे

बर्फ हऽ, भाप हऽ, पानी हऽ कि कुछुओ ना हऽ
जिन्दगी का हवे, ई राज बुझाते नइखे

दफ्न बा दिल में तजुर्बा त बहुत, ए ‘भावुक’
छंद के बंध में सब काहें समाते नइखे

Thursday, September 25, 2014

कबले देह बिकाई? - रामनारायण उपाध्याय

एक देह पर सौ-सौ बोझा, कइसे आज खिंचाई
चाउर, दाल, नमक हरदी में-कबले देह बिकाई?
गलती पर गलती करि-करि के, लइका कइनी सात,
भइल बिलाला खइला बेगर, भेंटत नइखे भात,
तन उघार बा, कपड़ा नइखे, मिलतो कहाँ दवाई?
कइली खून-पसीना दिन भर, मिलल मजूरी आधा,
ऊहा सेठवा छीन ले गइल, पेट प दिहलस बाधा,
हाड़ हिलल पर भार ना उतरल, गतर-गतर चिथराई।
केहु के कुतवा दूध पिअत बा, केहु के पुतवा भूखल,
केहु के तोंद हाथ भर बाहर, केहु के पेटवा सूखल,
अरजी सुननिहार कहवाँ बा, आपन भइल पराई
एक त धरकच डहलस, दोसर बिटिया भइल सेयान,
कइसे हाथ पीअर होई, बेटहा भइले बैमान,
दिन में चैन ना रात में निंदिया, फाटल पाँव बेवाई

Monday, September 22, 2014

जागऽ जवान आज - दयाशंकर तिवारी

देशवा पर आइल बा संकट महान हो,
जागऽ जवान आज जागऽ किसान हो!
एही धरतिया के राम, कृष्ण, बापू,
शेखर, सुभाष, भगत भइले लड़ाकू।
ओकरे ही अंगना में विलखत विहान हो,
जागऽ जवान आज जागऽ किसान हो।।
विष बोवें जगह-जगह लम्पट अग्यानी,
तुलसी के भजन मौन, नानक के बानी।
बेअसर शब्द कीर्तन भजन औ अजान हो,
जागऽ जवान आज जागऽ किसान हो।।
घर-घर में आइल बा कइसन मजबूरी,
भाई अब भाई के भोंकि रहल छूरी।
रोग लगल कइसन, ना सूझे निदान हो,
जागऽ जवान आज जागऽ किसान हो।।
धरम सब समान, कहीं भेद ना बुझाला,
गिरजाघर, मंदिर भा मस्जिद, गुरुद्वारा।
राह भले अलग, एक मंजिल पहचान हो,
जागऽ जवान आज जागऽ किसान हो।।
देश में विदेशियन के जाल अधिकइलें,
फिर से जयचन्द, मीरजाफर बिकइलें।
सजग रहऽ सिद्ध संत, पंडित, पठान हो,
जागऽ जवान आज जागऽ किसान हो।।
दुनिया में प्रेम के सनेस जे पठावल,
ओकरे घर कइसन ई घृणा के महावल।
पलटऽ गुरुग्रन्थ, वेद, बाइबिल, कुरान हो,
जागऽ जवान आज जागऽ किसान हो।।

Friday, September 19, 2014

सपना- गोरख पाण्डेय

सूतल रहनी सपना एगो देखलीं
सपना मनभावन हो सखिया,
फूटल किरनिया पुरुब असमनवा
अँखिया के नीरवा भइल खेत सोनवा
गोसयाँ के लठिया मुरइआ अस तूरलीं
मेहनति माटी चारों ओर चमकवली
बैरी पैसवा के रजवा मेटवलीं
उजर घर आँगन हो सखिया,
त खेत भइलें आपन हो सखिया,
भगवलीं महाजन हो सखिया
केहू नाहीं ऊँचा नीच केहू के न भय
नाहीं केहू बा भयावन हो सखिय,
ढहल इनरासन हो सखिया,
मिलल मोर साजन हो सखिया