Friday, September 19, 2014

सपना- गोरख पाण्डेय

सूतल रहनी सपना एगो देखलीं
सपना मनभावन हो सखिया,
फूटल किरनिया पुरुब असमनवा
अँखिया के नीरवा भइल खेत सोनवा
गोसयाँ के लठिया मुरइआ अस तूरलीं
मेहनति माटी चारों ओर चमकवली
बैरी पैसवा के रजवा मेटवलीं
उजर घर आँगन हो सखिया,
त खेत भइलें आपन हो सखिया,
भगवलीं महाजन हो सखिया
केहू नाहीं ऊँचा नीच केहू के न भय
नाहीं केहू बा भयावन हो सखिय,
ढहल इनरासन हो सखिया,
मिलल मोर साजन हो सखिया

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