Saturday, November 22, 2014

भोजपुरी और पंजाबी

भोजपुरी अथवा ‘भोजपुरिया’ भाषा के नामकरण बिहार राज्य के बक्सर जिला में (पहिले आरा (शाहाबाद) जिला में स्थित) भोजपुर नामक गाँव की नाम पर भइल हवे। भोजपुर नाम के एगो बड़ा परगना बा जेवना में "नवका भोजपुर" अउरी "पुरनका भोजपुर" नाँव के दू गो गाँव बाड़ें । मध्य काल में एह स्थान के राजपूताने के मूल निवासी भोजवंशी परमार राजा जवन लोग उज्जैन हो के आइल रहे, बसावल आ एकर नाँव अपनी पूर्वज राजा भोज के नाम पर ‘भोजपुर’ रखने । एही भोजपुर राज्य के भाषा के नाँव भोजपुरिया अथवा भोजपुरी भइल । 

आज भोजपुरी के सीमा ए.बी.सी.डी. (यानी आरा, बलिया, छपरा, देवरिया) के प्रचलित परिभाषा से बहुत आगे सरक गइल बा |

आस - पास के भाषा कुल अगर मिळत होंखे त कौनो हैरान होखले के बात न ह , लेकिन अगर दूर के दू गो भाषा जवन दुन्नो के दूर दूर तक के आपस में  कउनो संबंध नाही बा अगर उ दुन्नो मिलत होंखे सब त बहुत ही आश्चर्य के बात होई | हलाकि भोजपुरी जैसे की मगही के से मिले ले वैसे त नाही पर कुछ हद तक पंजाबी के भोजपुरी से  या फिर कहल जा की भोजपुरी के पंजाबी से मिलले के लक्षण दिखाई देला | कुछ अइसन शब्द जवन की बिहार के भोजपुरी और पंजाब के पंजाबी से मिले ला ओके देखीं |

ਪੰਜਾਬੀ (पंजाबी)*
भोजपुरी*
हिन्दी*
ਨੇੜੇ (नेड़े)
नियरे
पास
ਲੂਣ (लूण)
नून
नमक
ਧੀ (धी)
धीया
बेटी
ਘਿਓ (घिओ)
घीव
घी
ਬੱਤੀ ਬਾਲਨਾ (बत्ती बालना) 
बत्ती बारल
बत्ती जलाना
ਠੀਪਾ (ठीपा) 
ठेपी
ढक्कन
ਤਾਕੀ (ताकी) 
ताखा
आला(सामान रखे के जगह)
ਚੌਕਾ (चौका)
चौका
रसोई
ਗੁੱਡੀ (गुड्डी)     
गुड्डी
 पतंग
ਮੋਰੀ  (मोरी)
 मोरी
नाली

* दिहल गईल शब्द पारंपरिक शब्द हवे न की आम बोली में बोले वाला शब्द

Sunday, November 16, 2014

किस ऑफ लव


कवनो हिन्दी फिल्म के गाना रहे 'किस किस को दूं' पहिले त नाइ बुझाइल पर जब इ पढनी की 'कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय, वा खाए बौराय जग वा पाए बौराय' में जइसे कनकके मतलब सोना और धतुरा से रहे ओही तरे गाना में एगो किस के मतलब 'चुम्मा' और एगो किस के मतलब 'अजनबी' बा |

दुनियानभर में भारत अपने भाषा, धर्म और खासकर अपने अनोखा सांस्कृतिक सभ्यता और अतुलनीय परम्परा के विभिन्न रंग और विविधता खातिर मशहूर ह | भारतीय संस्कृति सही मायने में पुरे विश्व खातिर एगो धरोहर ही ह | आज ओही भारतीय संस्कृति के बेडा गर्क कर के बदनाम करे के काम 'चुम्मा-चाटी संघ'  उठवले बा | कोच्ची से कोलकाता और दिल्ली हो के अब संघ के मतवाला टोली आपन गन्दगी फैलावे के खातिर भोपाल तक पहुच गइल |

सरकार के तरफ से कहल गइल ह की इ मुहीम प्रधानमंत्री मोदी जी के द्वारा शुरू कइल गइल स्वच्छ-भारत आन्दोलनके कमजोर करे के साजिश ह, अइसन असामजिक तत्वन पर गंभीरता से न्यायोचित कार्यवाही करत बड़ी सख्ती से निपटल जाई | ओहिजा दूसरी तरफ 'चुम्मा-चाटी संघ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष इमरान हाफमी जी कहत हईं की हम 'किस ऑफ लव' के मुहीम से दुनिया के इ बता दिहल चाहत बानी की हम कवने कोटी के नीच और अश्लीलप्राणी हईं | एक कदम आगे जाके उ कहनी की 'दाग लगले से कुछ अच्छा होला त दाग अच्छा होला'| उनकर मानल इ बाकी उनके खातिर इ 'आत्म-अपमान' के लड़ाई हवे |

संघ के महिला सेल के अध्यक्षा सनी डायनो हमहन बतवली ह की हमहन के अश्लीलता फैलावे से केहू नाही रोक सकेला | अउर अगर अइसन कइल गईल त हम आपन गन्दगी पूरा देश में और जोर-सोर एवं उग्र तरीका से फैलइब | दूसर वरिष्ठ महिला सदस्य मल्लिका हेमरावत के कहल बा की 'चुम्मा-चाटी संघ' के सब काम देश और समाज के दुर्गति खातिर बा | हम लोग आपन अश्लीलता के काम बहुत ही बेशर्मी से चालू रखब के | और हमहन के एह बात के पूरा विश्वाश दिलवाल चाहत बानी के की देश के युवा वर्ग हमहन से बेशर्मीऔर लज्जाऔर हयाके सारा गुन सीखी |

एक बुजुर्ग कहत बाने की देश के बुजुर्गन के ठगल गइल बा | और एगो बाबा जी त कहत हवे की 'राम-राम-राम' हमहन के जमाना में इ मुहीम कहे नाही चलल? 'ना त बाबु हमहू सबसे आगे रहतीं' |

अब देखे वाला बात इ होई की आये वाला समय में चुम्मा-चाटी संघऔर सरकार बीच के खींच-तान कहवा ले जाई ? पर जवन भी होखे संघ के ए कदम से प्रधानमंत्री के स्वच्छ-भारत आन्दोलन' पर खतरा और 'गन्दगी' के बदल मंडरावे लागल बाटे |

व्यंग के अलावा अगर बात कइल जा त स्त्री-पुरुष के भगवान खुद बनवले बाने अउर स्त्री-पुरुष दूनो मिल के संसार रचने पर ए सर्जन के काम खुल्ला कइले के का जरुरत बा ? का घर के चहारदीवारी नइखे ? कि घरवे नइखे ? अगर बेशर्मी के मतलब आजादी होला त कपडा पहिनले के का जरुरत बा ? गोरु सब तरे प्राकृतिक रूप में रहल करे इंसान | खूब 'किस' करीं और 'किस' किस के साथ करी एहु के हिसाब रखीं लेकिन पेड़ के ठुनुगी पे बइठ के अगर ओछा हरकत करब त केहू न केहू त टोकबे करी |

छोटहन कपडा में घुम्मे वाला अउर स्मार्ट-फोन चलावे वाला आज कल के स्मार्टपीढ़ी खुद के ना त अपने जन्मदाता सब के इज्जत के भी त कुछ खयाल रख ले |

Sunday, November 9, 2014

कैथी - वक्त के साथ भुलाइल लिपि

एक वो भी वक्त था जब मेरे बिना काम न चलता था |
    एक ये भी वक्त है जब मेरा नाम भी गुमनाम चलता है ||


       कैथी लिपि अगर शायर होइत, त शायद इहे बात कहित | अइसन कहे के ओकर वजह भी बा, १६ वीं सदी में इजाद कइल गईल और १८८० के दशक में संयुक्त बिहार में आधिकारिक भाषा के दर्जा पावे वाली कैथी आज लुप्त होखे के कगार पर बा | वाह रे हमनी के, हमनी के आपन लिपि के भुला देनी जा | आ दोसर प्रांत आ देस के लोग एकरा के अपना के धन्य हो गइले | का रउआ मालूम बा कि राउर भोजपुरी भाषा के आपन लिपि कैथी आज गुजरात के आधिकारिक लिपि के रूप में सम्मानित आ प्रचलित बिया? इहे ना, राउर ई लिपि बांग्लादेश के सिलहटी या सिलोटी कहल जाये वाला भाषो के मूल लिपि बनल बिया | कैथी भोजपुरी भासा के एगो वैज्ञानिक आ ऐतिहासिक लिपि ह | एह बात के दस्तावेजी प्रमाण मौजूद बा कि एह लिपि के प्रयोग मध्यकाल से भारत के एगो बहुत बड़ इलाका में होत रहल बा | असल में ओह घड़ी लिखे पढ़े वाला लोग जादेतर कायस्थ समाज के होत रहे | कैथी लिपि के नाम ओही से पहिले "कायस्थी", आ फेर "कयथी" आ अंत में कैथी पड़ि गइल | खासियत ई बा कि इ जल्दी लिखा जाले | काहें कि एकरा में कवनो टेक या शीर्ष रेखा ना होला | एकरा में एक्के सकार होला | भोजपुरी के लोगन के देखब कि ऊ लोग श आ ष दूनों के स कहेला | एह लिपि में ऋ, लृ, लू, स्वर आ ङ् ञ ण व्यंजन ना होखे | सांच कहल जाव त भोजपुरी के कैथी लिपि के गुजराती लोग अपना के माथा से लगा लिहले, आ भोजपुरिया लोग नागरी आंदोलन के प्रभाव दबाव में आके एकरा के भुला दिहले |

कैथी के व्यंजन और अंक


कैथी के स्वर


       अंगरेजी सरकार के शासन में कैथी बिहार के सरकारी लिपि रहे | १८७१ ई0 में सर जॉर्ज कैम्पबेल भागलपुर के डिस्ट्रिक्ट गजेटियर में कोर्ट में परसियन के साथ-साथ कैथियो लिपि के मान्यता देवे के आदेश देले रहन, ई बात पी सी राय चौधरी लिखले बाड़े |  इहे ना एह लिपि  मेंसंताल हुल (१८५५) के समय भागलपुर एवं पूर्णिया में घोषणो-पत्र जारी कइल गइल रहे | जून १९३७ के अनुसार पटना, भागलपुर, संताल परगना एवं छोटानागपुर में कैथी लिपि के मान्यता देहल गइल रहे | आरा के मशहूर स्वतंत्रता सेनानी बाबू वीर कुंवर सिंह हमेशा आपन दस्तखत कैथी में करत रहन | ऊ एह लिपि के ठीक से जानत आ एकर उपयोगो करत रहन | एकर एगो प्रमाण बाबू वीर कुंवर सिंह द्वारा शाहाबाद के तत्कालीन कलक्टर के २२ मई १८५७ के लिखल चिट्ठी बाटे | एकरा में दस्तखत कैथी लिपि में बा | एकर चर्चा रीताम्बरी देवी के किताब ‘इंडियन म्युटिनी- १८५७ इन बिहार‘ में बाटे |

       अब्बे भी बिहार के साथ साथ देश के उत्तर पूर्वी राज्यं में ए लिपि में लिखल हजारों अभिलेख बानें सब | समस्या तब होला जब ए अभिलेखन से जुडल कवनो अड़चन आवेला | दैनिक जागरण के पटना संस्करण में ९ दिसम्बर २००९ के पृष्ठ संख्या २० पर बक्सर से छपल कंचन किशोर के एक खबर के अनुसार, ए लिपि के जानकार अब ओ जिला में बस दो लोग बचल बा | और दुन्नो जानी बहुत ही उम्रदराज़ बाने | अइसन में निकट भविष्य में ए लिपि के जाने वाला शायद ही केहू बचे और तब एह लिपि में लिखल  भू-अभिलेखन के अनुवाद आज के प्रचलित भाषा में कइल केतना मुश्किल होई एकर सहज ही अंदाजा लगावल जा सकेला | भाषा के जानकारन के अनुसार इहे हाल हर जगह बा | कैथी के विडंबना इ बा की हमके इ लेख भी देवनागरी में लिखे के पडत बा |ऐसे में एह लिपि के संरक्षण के जरुरत बाटे |

Thursday, November 6, 2014

गाँव क बरखा - चंद्रशेखर मिश्र

बरखा

हमरे गाँव क बरखा लागै बड़ी सुहावन रे।।
सावन-भादौ दूनौ भैया राम-लखन की नाईं,
पतवन पर जेठरु फुलवन पर लहुरु कै परछाईं।
बनै बयार कदाँर कान्ह पर बाहर के खड़खड़िया,
बिजुरी सीता दुलही, बदरी गावै गावन रे।।

बड़ी लजाधुर बिरई अंगुरी छुवले सकुचि उठेली,
ओहू लकोअॅरी कोहड़ा क बतिया, देखतै मुरझेली।
बहल बयरिया उड़ै चुनरिया फलकै लागै गगरिया,
नियरे रहै पनिघरा, लगै रोज नहावन रे।।

मकई जब रेसमी केस में मोती लर लटकावै,
तब सुगना रसिया धीर से घुँघट आय हटावै।
फूट जरतुहा बड़ा तिरेसिहा लखैत बिहरै छतिया,
प्रेमी बड़ी मोरिनियाँ लागै मोर नचावन रे।।