Sunday, November 16, 2014

किस ऑफ लव


कवनो हिन्दी फिल्म के गाना रहे 'किस किस को दूं' पहिले त नाइ बुझाइल पर जब इ पढनी की 'कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय, वा खाए बौराय जग वा पाए बौराय' में जइसे कनकके मतलब सोना और धतुरा से रहे ओही तरे गाना में एगो किस के मतलब 'चुम्मा' और एगो किस के मतलब 'अजनबी' बा |

दुनियानभर में भारत अपने भाषा, धर्म और खासकर अपने अनोखा सांस्कृतिक सभ्यता और अतुलनीय परम्परा के विभिन्न रंग और विविधता खातिर मशहूर ह | भारतीय संस्कृति सही मायने में पुरे विश्व खातिर एगो धरोहर ही ह | आज ओही भारतीय संस्कृति के बेडा गर्क कर के बदनाम करे के काम 'चुम्मा-चाटी संघ'  उठवले बा | कोच्ची से कोलकाता और दिल्ली हो के अब संघ के मतवाला टोली आपन गन्दगी फैलावे के खातिर भोपाल तक पहुच गइल |

सरकार के तरफ से कहल गइल ह की इ मुहीम प्रधानमंत्री मोदी जी के द्वारा शुरू कइल गइल स्वच्छ-भारत आन्दोलनके कमजोर करे के साजिश ह, अइसन असामजिक तत्वन पर गंभीरता से न्यायोचित कार्यवाही करत बड़ी सख्ती से निपटल जाई | ओहिजा दूसरी तरफ 'चुम्मा-चाटी संघ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष इमरान हाफमी जी कहत हईं की हम 'किस ऑफ लव' के मुहीम से दुनिया के इ बता दिहल चाहत बानी की हम कवने कोटी के नीच और अश्लीलप्राणी हईं | एक कदम आगे जाके उ कहनी की 'दाग लगले से कुछ अच्छा होला त दाग अच्छा होला'| उनकर मानल इ बाकी उनके खातिर इ 'आत्म-अपमान' के लड़ाई हवे |

संघ के महिला सेल के अध्यक्षा सनी डायनो हमहन बतवली ह की हमहन के अश्लीलता फैलावे से केहू नाही रोक सकेला | अउर अगर अइसन कइल गईल त हम आपन गन्दगी पूरा देश में और जोर-सोर एवं उग्र तरीका से फैलइब | दूसर वरिष्ठ महिला सदस्य मल्लिका हेमरावत के कहल बा की 'चुम्मा-चाटी संघ' के सब काम देश और समाज के दुर्गति खातिर बा | हम लोग आपन अश्लीलता के काम बहुत ही बेशर्मी से चालू रखब के | और हमहन के एह बात के पूरा विश्वाश दिलवाल चाहत बानी के की देश के युवा वर्ग हमहन से बेशर्मीऔर लज्जाऔर हयाके सारा गुन सीखी |

एक बुजुर्ग कहत बाने की देश के बुजुर्गन के ठगल गइल बा | और एगो बाबा जी त कहत हवे की 'राम-राम-राम' हमहन के जमाना में इ मुहीम कहे नाही चलल? 'ना त बाबु हमहू सबसे आगे रहतीं' |

अब देखे वाला बात इ होई की आये वाला समय में चुम्मा-चाटी संघऔर सरकार बीच के खींच-तान कहवा ले जाई ? पर जवन भी होखे संघ के ए कदम से प्रधानमंत्री के स्वच्छ-भारत आन्दोलन' पर खतरा और 'गन्दगी' के बदल मंडरावे लागल बाटे |

व्यंग के अलावा अगर बात कइल जा त स्त्री-पुरुष के भगवान खुद बनवले बाने अउर स्त्री-पुरुष दूनो मिल के संसार रचने पर ए सर्जन के काम खुल्ला कइले के का जरुरत बा ? का घर के चहारदीवारी नइखे ? कि घरवे नइखे ? अगर बेशर्मी के मतलब आजादी होला त कपडा पहिनले के का जरुरत बा ? गोरु सब तरे प्राकृतिक रूप में रहल करे इंसान | खूब 'किस' करीं और 'किस' किस के साथ करी एहु के हिसाब रखीं लेकिन पेड़ के ठुनुगी पे बइठ के अगर ओछा हरकत करब त केहू न केहू त टोकबे करी |

छोटहन कपडा में घुम्मे वाला अउर स्मार्ट-फोन चलावे वाला आज कल के स्मार्टपीढ़ी खुद के ना त अपने जन्मदाता सब के इज्जत के भी त कुछ खयाल रख ले |

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