एक वो भी वक्त था जब मेरे बिना काम न चलता था |
एक ये भी वक्त है जब मेरा नाम भी गुमनाम चलता है ||
कैथी लिपि अगर शायर होइत, त शायद इहे बात कहित | अइसन कहे के ओकर वजह भी बा, १६ वीं सदी में इजाद कइल गईल और १८८० के दशक में संयुक्त बिहार में आधिकारिक भाषा के दर्जा पावे वाली कैथी आज लुप्त होखे के कगार पर बा | वाह रे हमनी के, हमनी के आपन लिपि के भुला देनी जा | आ दोसर प्रांत आ देस के लोग एकरा के अपना के धन्य हो गइले | का रउआ मालूम बा कि राउर भोजपुरी भाषा के आपन लिपि कैथी आज गुजरात के आधिकारिक लिपि के रूप में सम्मानित आ प्रचलित बिया? इहे ना, राउर ई लिपि बांग्लादेश के सिलहटी या सिलोटी कहल जाये वाला भाषो के मूल लिपि बनल बिया | कैथी भोजपुरी भासा के एगो वैज्ञानिक आ ऐतिहासिक लिपि ह | एह बात के दस्तावेजी प्रमाण मौजूद बा कि एह लिपि के प्रयोग मध्यकाल से भारत के एगो बहुत बड़ इलाका में होत रहल बा | असल में ओह घड़ी लिखे पढ़े वाला लोग जादेतर कायस्थ समाज के होत रहे | कैथी लिपि के नाम ओही से पहिले "कायस्थी", आ फेर "कयथी" आ अंत में कैथी पड़ि गइल | खासियत ई बा कि इ जल्दी लिखा जाले | काहें कि एकरा में कवनो टेक या शीर्ष रेखा ना होला | एकरा में एक्के सकार होला | भोजपुरी के लोगन के देखब कि ऊ लोग श आ ष दूनों के स कहेला | एह लिपि में ऋ, लृ, लू, स्वर आ ङ् ञ ण व्यंजन ना होखे | सांच कहल जाव त भोजपुरी के कैथी लिपि के गुजराती लोग अपना के माथा से लगा लिहले, आ भोजपुरिया लोग नागरी आंदोलन के प्रभाव दबाव में आके एकरा के भुला दिहले |
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कैथी के व्यंजन और अंक |
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कैथी के स्वर |
अंगरेजी सरकार के शासन में कैथी बिहार के सरकारी लिपि रहे | १८७१ ई0 में सर जॉर्ज कैम्पबेल भागलपुर के डिस्ट्रिक्ट गजेटियर में कोर्ट में परसियन के साथ-साथ कैथियो लिपि के मान्यता देवे के आदेश देले रहन, ई बात पी सी राय चौधरी लिखले बाड़े | इहे ना एह लिपि मेंसंताल हुल (१८५५) के समय भागलपुर एवं पूर्णिया में घोषणो-पत्र जारी कइल गइल रहे | जून १९३७ के अनुसार पटना, भागलपुर, संताल परगना एवं छोटानागपुर में कैथी लिपि के मान्यता देहल गइल रहे | आरा के मशहूर स्वतंत्रता सेनानी बाबू वीर कुंवर सिंह हमेशा आपन दस्तखत कैथी में करत रहन | ऊ एह लिपि के ठीक से जानत आ एकर उपयोगो करत रहन | एकर एगो प्रमाण बाबू वीर कुंवर सिंह द्वारा शाहाबाद के तत्कालीन कलक्टर के २२ मई १८५७ के लिखल चिट्ठी बाटे | एकरा में दस्तखत कैथी लिपि में बा | एकर चर्चा रीताम्बरी देवी के किताब ‘इंडियन म्युटिनी- १८५७ इन बिहार‘ में बाटे |
अब्बे भी बिहार के साथ साथ देश के उत्तर पूर्वी राज्यं में ए लिपि में लिखल हजारों अभिलेख बानें सब | समस्या तब होला जब ए अभिलेखन से जुडल कवनो अड़चन आवेला | दैनिक जागरण के पटना संस्करण में ९ दिसम्बर २००९ के पृष्ठ संख्या २० पर बक्सर से छपल कंचन किशोर के एक खबर के अनुसार, ए लिपि के जानकार अब ओ जिला में बस दो लोग बचल बा | और दुन्नो जानी बहुत ही उम्रदराज़ बाने | अइसन में निकट भविष्य में ए लिपि के जाने वाला शायद ही केहू बचे और तब एह लिपि में लिखल भू-अभिलेखन के अनुवाद आज के प्रचलित भाषा में कइल केतना मुश्किल होई एकर सहज ही अंदाजा लगावल जा सकेला | भाषा के जानकारन के अनुसार इहे हाल हर जगह बा | कैथी के विडंबना इ बा की हमके इ लेख भी देवनागरी में लिखे के पडत बा |ऐसे में एह लिपि के संरक्षण के जरुरत बाटे |
some parts of this artical was taken by my story published in i next. thanks that you produced it in bhojpuri.
ReplyDeletedayanand roy
some parts of this artical was taken by my story published in i next. thanks that you produced it in bhojpuri.
ReplyDeletedayanand roy
सही बात हैै।
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