अपने देश भारत में आज भी कुछ अइसन परम्परा जीवित बाटे जवन
की आज के सभ्य कहल जाया वाला समाज के आश्चर्यचकित करेला | अइसन ही एगो परम्परा के बारे में हम आज आप के बतावे जात
बानी | ए परम्परा के शुरुवात
कईसे भइल इ त आज केहू के ना मालूम बा लेकिन एसे जुडल समुदाय के लोगन के कहल बा की
उ एकरे बारे में अपने पूर्वजन से सुनत आवत हवें | हिन्दू धर्म में कउनो सुहागिन आपन सुहाग के निशानी ना छोड
सकेले और अगर अइसन होत बा त ओके बहुत ही बडहन अपशगुन मानल जाला | लेकिन ए परम्परा में पति के सलामती के खातिर
पत्नी विधवा के जीवन जीयेली | इ परम्परा गछवाहा समुदाय से जुडल बा और इ समुदाय मुख्यतः
ताड़ी के पेशा से जुडल ह | इ समुदाय पूर्वी
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, देवरिया और एसे
सटल बिहार के कुछ इलाका में रहेला |
तरकुलहा देवी (आकाशकामिनी माता ) |
ताड के पेड़ ५०-६० फिट से भी ऊँचा और एकदम चिकना होला और इ
समुदाय के लोग इतना ऊंचाई से ताड़ी निकलले के काम करेने | ताड के पेड़ पर चढ़ के ताड़ी निकलले के काम बहुत ही खतरनाक
होला | ताड़ी निकलले के काम चइत (
चैत ) महिना से लेके सावन महिना तक होखेला (कुल चार महीना ) | गछवाहा औरत जिनके की तरकुलारिष्ट भी कहल जाला ए
चार महिना में ना त आपन मांग में सिंदूर भरेली और ना ही कउनो अउर श्रृंगार करेली |
उ अपने सुहाग के निशानी तरकुलहा देवी (गछवाहा समुदाय इहाँ के आकाशकामिनी माता के नाम
से भी जानेला ) के पास रेहन रख के अपने पति के सलामती खातिर प्रार्थना करेली |
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तरकुलहा देवी मंदिर |
तरकुलहा देवी गछवाहा समुदाय के इष्ट देवी हइ | तरकुलहा देवी के मंदिर गोरखपुर से २० किलोमीटर
के दुरी पर गोरखपुर-देवरिया मार्ग पर बा | पूर्वी उत्तर प्रदेश में इ हिन्दुअन के एगो प्रमुख धार्मिक स्थल हवे | गछवाहा औरत चइत के राम नवमी से लेके सावन के
नाग पंचमी तक अइसे ही रहेली | ताड़ी के काम ख़तम
होखले के बाद सब गछवाहा नाग पंचमी के दिने तरकुलहा देवी के मंदिर में जुट के पूजा
करेने | पूजा के बाद गछवाहा
महिलाये आपन-आपन मांग सिंदूर से भरेली और बाकी के भी श्रृंगार करेली |
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