Saturday, January 17, 2015

ओस के मिठाई – मलईयो

मलइयो

भगवान् शिव के नगरी बनारस जेतना अपने धार्मिकता खातिर परसिद्ध ह ओतना ही अपने मिठाईयन खातिर भी, चाहे उ लवंगलत्ता होखे चाहे बनारस के मीठा पान | वैसे त आज बनारस के हर मिठाई उत्तर भारत के लगभग हर शहर में मिल जाई लेकिन आज भी बनारस के पास एगो अइसन मिठाई बा जवन कि कहीं अउर ना मिली, ओकर नाम ह ‘मलइयो| आज भी बनारस के ही मलइयो पर एकाधिकार बा जबकि दुसर मिठाई अलग-अलग जगह आपन पहुच बना लेहले बाने सब | ‘मलइयो के विशेषता ह कि इ ओस के बूंद और दूध से बनावल जाला अब ओस पूरा साल त गिरेला ना, बस सर्दी के तीन महिना(नवम्बर से लेके जनवरी तक) त मलइयो भी बस ओही तीन महिना में मिलेला उहो दुपहरिया के 12 बजे से पहिले-पहिले |

मलइयो बनावे के तरीका अउर सब मिठाई से अलग ह | एके बनावे खातिर पहिले त कच्चा दूध के बडहन-बडहन कढ़ाही में खौलावल जाला ओकरे बाद रात में छत पे खुलल आसमान के नीचे रख दिहल जाला | रात भर ओस के नीचे रहेला जवने कारन दूध में झाग बन जाला | अगिला दिन सबेरे ए झाग वाला दूध के मथनी से मथल जाला फिर एम्मे छोटका इलायची, मेवा और केसर डाल के फिर से मथल जाला | अब एह झाग वाला दूध के माटी के कुल्हड में डाल के बेचल जाला |

बनले में ओस के इस्तेमाल होखले के कारन इ बस सर्दी के कुछ तीन महिना नवम्बर से लेके जनवरी तक ही मिलेला | जेतना ओस पड़ी ओतना ही बेहतरीन बनी इ मलइयो | सुबेरे शुरू होखले के बाद एकर बिक्री 12 बजे तक होला कहे से की तबले त इ ख़तम ही हो जाला | ओकरे बाद एकरा खातिर अगले दिन के इन्तजार करे के पड़ेला | बनारस में भी इ बस गंगा के किनारे बसल मोहल्ला में ही मिलबो करेला |

ओस के इस्तेमाल से बनले के कारन एकर आयुर्वेदिक महत्व भी बढ़ जाला ओस के बूंद में  प्राकृतिक मिनरल पावल जाला, जवान कि त्वचा खातिर लाभदायक होला | ओस के बूंद त्वचा में पड़े वाला झुर्री के भी रोकेला और आँख के देखले के छमता भी बढावेला | एम्मे पडल मेवा ताकत और केसर सुन्दरता प्रदान करेला | बच्चन से लेके बूढ़न, देशी से लेके विदेशी पर्यटक हर तरह के लोग एके एक बार खईले के बाद एकर दीवाना हो जाला |

त अगली बार सर्दी में अगर वनारस जात बानी त मलइयो जरुर खा के आईब |

No comments:

Post a Comment