Thursday, December 24, 2015

क्रिसमस

कालेज के तमाम बढ़िया बातन में एगो बात इहो रहे कि कॉलेज में हर तरह के त्यौहार मनावल जा | कब्बो केहू इ न सोचे कि इ हमार त्यौहार ह कि केहू अउरी के बस मनवले के उत्साह रहे | आज जमाना बदल गईल बा जेसे कि कुछ लोग हमार-उनकर कुछ ढेर सोचे लगल बाने पर आजुओ बहुत से लोग अइसन बाने जवन कब्बो ना सोचेलें | ओ समय हर त्यौहार बस आपन होखल करे | ओह साल से पहिले हमके कब्बो भी क्रिसमस मनवले के अनुभव नाइ भईल रहे | कुछ पता ना रहे कि का होला क्रिसमस और कइसे मनावल जाला ? इहाँ तक कि कब्बो केहू के भुलाइयो के क्रिसमस के बधाई ना देहलीं | ओहू के कारन रहे, कब्बो केहू क्रिसमस वाला दोस्त ना बनल ऊपर से शिशु मंदिर में पढ़नी त उहाँ कब्बो मनावल भी ना गईल त स्कूलवो में ना सीख पवलीं |

सेमेस्टर पेपर के चक्कर में ओ बार नया साल पर केहू घरे ना जा पावल | वैसे में त कॉलेज में क्रिस्चियन लड़का-लड़की ना के बराबर रहले लेकिन हमारे ही क्लास में एगो क्रिस्चियन लड़की मारिया रहे | मारिया से हमार बस ओतने बातचीत होखे कि एक बार उ हमसे पेन मांग लेहले रहे बस | ठीक से 'hi' 'hello' भी ना होखे | जइसे आज कल फेसबुक पर 'like' के संबंध होला बस ओइसही हमार और मारिया के संबंध रहे | दिसंबर के महिना रहे, शाम के समय रहे, जगह रहे कॉलेज के कैंटीन अउर तारीख रहे 25 यानी क्रिसमस के दिन |

ठण्ड में ठिठुरत हम जात रहलीं कैंटीन से बाहर तब्बे अचानक से मारिया सामने पड गईली | अब सामने पड़िए गईली त हमहू फाटक से बोल दिहलिं "HAPPY CHRISTMAS" | इ सुनते ही उ हँसे लगली और कहली "HAPPY CHRISTMAS"  नाही बुद्धू  "MERRY CHRISTMAS" बोलल जाला, ल इ केक खा हम खुद बनवलें हईं | अगर कवनो लइका केहू के बुद्धू आ चाहे एसे मिलत जुलत कुछ बोल देई त बुरा लागी लेकिन हमके उ बुद्धू बहुत ही प्यारा लागल और केक त बहुते मस्त रहे | मारिया फिर पूछली
"तू लोग ना मनावे ल का क्रिसमस?"
"नाही पते नइखे कैसे मनावल जाला"
"बहुत आसान बा, दोस्तन के साथे खुशियाँ बांटS और सांता से जवन विश
मांगे के बा मांग लS"
"सांता सबकर विश पूरा करेलें का?" तनी सोच के हम पूछलीं | एहपर उ बोलली
"विश पूरा होखले के केके पडल बा? जिंदगी में विश होखे के चाहीं , पूरा
होखल जरुरी नइखे , बुझलS"

अब्बे हमहन के बात चलते रहे कि कैंटीन के गेट से हमार दोस्त सब चिल्ला-चिल्ला के बोलावे लगने और ओन्नी मारिया के भी कॉलेज के कुछ अउर लोग आ के  "MERRY CHRISTMAS" विश करे लगने | हम बेमन से अपने दोस्तन के पास चल गईलीं त ईगो दोस्त कोहनी मार के ओई दिन मारिया से बात कईले के पार्टी मांग लेहलस | हमहू ख़ुशी-ख़ुशी मारिया से बातचीत के "ख़ुशी " दोस्तन में पार्टी देके बांट दिहलीं | उ हमार पहिला "MERRY CHRISTMAS" रहे |

आज एतना साल के बाद जब क्रिसमस के शाम में बइठ के लिखत हईं त मारिया अउर उनके साथे भईल अधूरा बातचीत याद आवत ह | ओ अधूरा बातचीत पूरा कईले के विश हम हर क्रिसमस के मांगेलीं, कहे से कि मारिया कहले रहलीं कि "जिंदगी में विश होखे के चाहीं , पूरा होखल जरुरी नइखे" |

Monday, July 20, 2015

भोजपुरी कहावत,लोकोक्ति अउर मुहावरा - भाग चार



भोजपुरी जनता द्वारा बोलल जाए वाला कुछ हिंदी में अनुवादित मुहावरा, भोजपुरी न समझे वाला लोगन के भी इ समझ आवे एह्लिये एकर हिंदी अनुवाद और अर्थ भी दिहल जात हवे | इ सब कहावत भोजपुरिया समाज के गाँव अउर आस पास के क्षेत्रन में आसानी से सुनल जा सकेला, एही खातिर इ सब मुहावरा अउर कहावत में समाज और माटी के भीना-भीना सुगंध भी मिलल हवे | कवनो समाज के अगर पूरा तरह जाने के होखे त ओ समाज के मुहावरा और कहावत सुने के चाही काहें से कि एक-एक मुहावरा अउर कहावत में ओह समाज के चिंतन अउर जीवन के सार भरल होला | त प्रस्तुत बा कुछ भोजपुरी कहावत और मुहावरा ...

०१ :- कुत्ता काटे अनजान के अउरी बनिया काटे पहचान के।
अर्थ- कुत्ता अपरिचित को काटता है और बनिया पहचान वाले को ठगता है।

०२ :- बिधी के लिखल बाँव ना जाई।
अनुवाद- विधि का लिखा गलत नहीम होगा।
अर्थ- विधि का लिखा अवश्य घटित होगा।

०३ :- गइल माघ दिन ओनतीस बाकी।
अनुवाद- गया माघ दिन उनतीस बाकी।
अर्थ- समय (अच्छा हो या बुरा) व्यतीत होते देर नहीं लगती।

०४ :- गाइ ओसर अउरी भँइस दोसर।
अनुवाद- गाय पहलौठी और भैंस दूसरे।
अर्थ- पहली बार ब्याई हुऊ गाय और दूसरी बार ब्याई हुई भैंस अच्छी मानी जाती हैं।

०५ :- जेकरी छाती बार नाहीं, ओकर एतबार नाहीं।
अनुवाद- जिसके सीने पर बाल नहीं, उसका भरोसा नहीं।
अर्थ- जिस मर्द के सीने पर बाल न हो, उसका भरोसा नहीं करना चाहिए।

०६ :- मुरुगा ना रही त बिहाने नाहीं होई।
अनुवाद- मुर्गा नहीं रहेगा तो सुबह नहीं होगी।
अर्थ- किसी के बिना कोई काम नहीं रुकता।

०७ :- देखादेखी पाप अउरी (और) देखादेखी धरम।
अर्थ- देखादेखी लोग अच्छे और बुरे कर्म करते हैं।

०८ :- जे केहु से ना हारे उ अपने से हारेला।
अनुवाद एवं अर्थ- जो किसी से नहीं हारता है उसे किसी अपने (सगे) से हारना पड़ता है।

०९ :- नरको में ठेलाठेली।
अनुवाद- नरक में भी ठेलाठेली।
अर्थ- कहीं भी आराम नहीं।

१० :- चाल करेले सिधरिया अउरी रोहुआ की सीरे बितेला।
अनुवाद- चाल करती है सिधरी और रोहू के सिर बितता है।
अर्थ- गल्ती करे कोई और, पकड़ा जाए कोई और।

११ :- करजा के खाइल अउरी पुअरा के तापल बरोबरे हS
अनुवाद- कर्जा का खाना और पुआल तापना बराबर होता है।
अर्थ- कर्जा लेना अच्छा नहीं होता।

१२ :- ढुलमुल बेंट कुदारी अउरी हँसी के बोले नारी।
अनुवाद- हिलता बेंत कुदाल का और हँस के बोले नारी।
अर्थ- दोनों से बचिए, खतरा कर सकती हैं।

१३ :- कनवा के देखि के अँखियो फूटे अउरी कनवा बिना रहलो न जाए।
अनुवाद- काना व्यक्ति को देखकर आँख भी फूटे और उसके बिना काम भी न चले।
अर्थ- ऐसे व्यक्ति से घृणा करना जिसके बिना काम न चले।

१४ :- हरिकल मानेला परिकल नाहीं मानेला।
अनुवाद- हड़कल मान जाता है लेकिन परिकल नहीं मानता है। हड़कल यानि पानी के अभाव में एकदम कड़ा हो
गया (खेत) जिसमें हल भी नहीं धँसता है ।(परिकल यानि वह व्यक्ति जिसे किसी चीज का चस्का लग गया हो
और उसके लिए वह उस काम को बार-बार करता हो)
अर्थ- खेत अगर हड़क जाए तो उसे धीरे-धीरे खेती योग्य बनाया जा सकता है लेकिन परिकल व्यक्ति कतई नहीं मानता।

१५ :- जेकर बहिन अंदर ओकर भाई सिकनदर।
अनुवाद- जिसकी बहन अंदर उसका भाई सिकंदर।

अर्थ- भाई अपने विवाहित बहन के घर में बेखौफ आता जाता है।

Monday, July 6, 2015

भोजपुरी कहावत,लोकोक्ति अउर मुहावरा - भाग तीन



भोजपुरी जनता द्वारा बोलल जाए वाला कुछ हिंदी में अनुवादित मुहावरा, भोजपुरी न समझे वाला लोगन के भी इ समझ आवे एह्लिये एकर हिंदी अनुवाद और अर्थ भी दिहल जात हवे | इ सब कहावत भोजपुरिया समाज के गाँव अउर आस पास के क्षेत्रन में आसानी से सुनल जा सकेला, एही खातिर इ सब मुहावरा अउर कहावत में समाज और माटी के भीना-भीना सुगंध भी मिलल हवे | कवनो समाज के अगर पूरा तरह जाने के होखे त ओ समाज के मुहावरा और कहावत सुने के चाही काहें से कि एक-एक मुहावरा अउर कहावत में ओह समाज के चिंतन अउर जीवन के सार भरल होला | त प्रस्तुत बा कुछ भोजपुरी कहावत और मुहावरा ...

०१ :- एगो हरे गाँव भरी खोंखी।
अनुवाद- एक हर्रे,गाँवभर खाँसी।
अर्थ- एक अनार सौ बीमार।

०२ :- बबुआ बड़ा ना भइया, सबसे बड़ा रुपइया।
अर्थ- पैसे का ही महत्व होना।

०३ :- लबर-लबर लंगरो देवाल फानें।
अनुवाद- जल्दी-जल्दी लंगड़ी महिला दीवाल फाँदे ।
भावार्थ :- पारंगत न होते हुए भी आगे बढ़कर कोई काम शुरु कर देना।

०४ :- बूनभर तेल करिआँवभरी पानी।
अनुवाद :- बूँदभर तेल और कमर तक पानी।
भावार्थ :- कम में काम चल जाए फिर भी ज्यादे का उपयोग।

०५ :- गइयो हाँ अउरी भइँसियो हाँ।
अनुवाद :- गाय भी हाँ और भैंस भी हाँ ।
भावार्थ :- गलत या सही का भेद न करते हुए किसी के हाँ में हाँ मिलाना।

०६ :- भगीमाने के हर भूत हाँकेला।
अनुवाद :- भाग्यवान का हल भूत हाँकता (चलाता) है।
भावार्थ :- भाग्यवान का भाग्य आगे-आगे चलता है।

०७ :- दुलारी घिया के कनकटनी नाव।
अनुवाद :- दुलारी बेटी का कनकटनी नाम।
भावार्थ :- ज्यादे दुलार बच्चों को बिगाड़ सकता है।

०८ :- साँचे कहले साथ छुटेला।
अनुवाद :- सच्चाई कहने से साथ छूटता है।
भावार्थ :- सच्चाई कहने से दुश्मनी हो जाती है।

०९ :- साँच के आँच नाहीं लागेला।
अनुवाद :- साँच को आँच नहीं।
भावार्थ :- सच्चा का अहित नहीं होता ना ही डर।

१० :- हँसुआ की बिआहे में खुरपी के गीत।
अनुवाद :- हँसुआ की विवाह में खुरपी का गीत।
भावार्थ :- जहाँ जो करना चाहिए वह न करके कुछ और करना।

११ :- साँपे के काटल रसियो देखी के डेराला।
अनुवाद :- जिसको साँप काट देता है वह रस्सी को भी देखकर डरता है।
भावार्थ :- दूध का जला छाछ भी फूँककर पीता है।

१२ :- जइसन देखीं गाँव के रीती ओइसन उठाईं आपन भीती।
अनुवाद :- जैसा देखें गाँव की रीत वैसा उठाएँ अपनी भीत।
भावार्थ :- समय को देखते हुए काम करें।

१३ :- दूसरे की कमाई पर तेल बुकुआ।
भावार्थ :- दूसरे के पैसे से मौजमस्ती करना।

१४ :- उपास से मेहरी के जूठ भला।
अनुवाद :- उपास से अपनी पत्नी का जूठ अच्छा।
भावार्थ :- बहुत कुछ न होने से कुछ होना भी ठीक है।

१५ :- मारे छोहन छाती फाटे अउरी आँसू के ठेकाने नाहीं।
अनुवाद :- मारे प्रेम से छाती फाटे और आँसू का ठिकाना ही नहीं।

भावार्थ :- दिखावामात्र घड़ियाली आँसू बहाना।



अगिला बाग़ में जारी....

Tuesday, May 5, 2015

भोजपुरी कहावत,लोकोक्ति अउर मुहावरा - भाग दू



भोजपुरी जनता द्वारा बोलल जाए वाला कुछ हिंदी में अनुवादित मुहावरा, भोजपुरी न समझे वाला लोगन के भी इ समझ आवे एह्लिये एकर हिंदी अनुवाद और अर्थ भी दिहल जात हवे | इ सब कहावत भोजपुरिया समाज के गाँव अउर आस पास के क्षेत्रन में आसानी से सुनल जा सकेला, एही खातिर इ सब मुहावरा अउर कहावत में समाज और माटी के भीना-भीना सुगंध भी मिलल हवे | कवनो समाज के अगर पूरा तरह जाने के होखे त ओ समाज के मुहावरा और कहावत सुने के चाही काहें से कि एक-एक मुहावरा अउर कहावत में ओह समाज के चिंतन अउर जीवन के सार भरल होला | त प्रस्तुत बा कुछ भोजपुरी कहावत और मुहावरा ...


०१ :- रहे निरोगी जे कम खाया, काम न बिगरे जो गम खाया।
अर्थ- कम खाना और गम खाना अच्छा होता है।

०२ :- केरा (केला), केकड़ा, बिछू, बाँस इ चारो की जमले नाश।
अर्थ- इन चारों की संतान ही इनका नाश कर देती है।

०३ :- सांवा खेती, अहिर मीत, कबो-कबो होखे हीत।
अनुवाद एवं अर्थ-- साँवा की खेती और अहिर की दोस्ती कभी-कभी ही लाभदायक होते हैं।

०४ :- आगे के खेती आगे-आगे, पीछे के खेती भागे जागे।
अर्थ- उपयुक्त समय की खेती अच्छी होती है लेकिन पीछे की गई खेती भाग्य पर निर्भर होती है।

०५ :- बकरी के माई कबले खर जिउतिया मनाई।
अनुवाद- बकरी की माँ कबतक खर जिउतिया मनाएगी।
अर्थ- जो होना है वह होगा ही।

०६ :- दस (आदमी) के लाठी एक (आदमी) के बोझ।
अर्थ- एकता में शक्ति है।

०७ :- जवने पतल में खाना ओही में छेद करना।
अनुवाद- जिस पत्तल में खाना उसी में छेद करना।
अर्थ- विश्वासघात करना।

०८ :- रोग के जड़ खाँसी।
अर्थ- खाँसी रोगों की जड़ है।

०९ :- मन चंगा त कठवती में गंगा।
अनुवाद- मन चंगा तो कठवत में गंगा।
अर्थ- मन की पवित्रता सर्वोपरि है।

१० :- सौ पापे बाघ मरेला।
अनुवाद- सौ पाप करने पर बाघ मरता है।
अर्थ- अति सर्वत्र वर्जयेत। पाप का घड़ा भरेगा तो फूटेगा ही ।

११ :- बाभन,कुकुर, भाँट, जाति-जाति के काट।
अर्थ- ब्राह्मण ,कुत्ता और भाँट अपनी जाति के लोगों के ही दुश्मन होते हैं।

१२ :- गाइ बाँधी के राखल जाले साड़ नाहीं।
अनुवाद- गाय बाँधकर रखी जाती है, साड़ नहीं।
अर्थ- मर्द की अपेक्षा औरत पर ज्यादे निगरानी रखना।

१३ :- जीअत पर छूँछ भात, मरले पर दूध-भात।
अनुवाद- जीवित रहने पर केवल भात, मरने पर दूध-भात।
अर्थ- मरने के बाद आदर बढ़ जाना।

१४ :- एगो पूते के पूत अउरी एगो आँखी के आँखि नाहीं कहल जाला।
अनुवाद- एक पूत को पूत और एक आँख को आँख नहीं कहा जाता।
अर्थ- संतान एक से अधिक ही अच्छी है।

१५ :- लोहा के लोहे काटेला।
अनुवाद- लोहे को लोहा काटता है।
अर्थ- समान प्रकृतिवाला ही भारी पड़ता है।



Saturday, May 2, 2015

भोजपुरी कहावत,लोकोक्ति अउर मुहावरा - भाग एक

      भोजपुरी जनता द्वारा बोलल जाए वाला कुछ हिंदी में अनुवादित मुहावरा, भोजपुरी न समझे वाला लोगन के भी इ समझ आवे एहलिये एकर हिंदी अनुवाद और अर्थ भी दिहल जात हवे | इ सब कहावत आप भोजपुरिया समाज के गाँव अउर आस पास के क्षेत्रन में आसानी से सुनल जा सकेला, एही खातिर इ सब मुहावरा अउर कहावत में समाज और माटी के भीना-भीना सुगंध भी मिलल हवे | कवनो समाज के अगर पूरा तरह जाने के होखे त ओ समाज के मुहावरा और कहावत सुने के चाही काहें से कि एक-एक मुहावरा अउर कहावत में ओह समाज के चिंतन अउर जीवन के सार भरल होला | त प्रस्तुत बा कुछ भोजपुरी कहावत और मुहावरा ...

०१ :- पूरी के पेट सोहारी से नाहीं भरी।
अनुवाद- पूड़ी का पेट सोहारी से नहीं भरेगा।
अर्थ- रुचि अनुसार भोजन होना चाहिए।

०२ :- सब चाही त काम आँटी।
अनुवाद- सब चाहेंगे तो काम अँटेगा।
अर्थ- अगर सब लोग काम में हाथ बटाएँ तो काम मिनटों में समाप्त हो जाए।

०३ :- सेतिहा के साग गलपुरना के भाजी।
अनुवाद- मुफ्त का साग गलपुरना की भाजी।
अर्थ- किसी वस्तु के होते हुए भी उसे और लाना जैसे लगे की मुफ्त की हो।

०४ :- नेबुआ तs लेगइल सागे में मती डाले।
अनुवाद- नेंबू तो ले गया, साग में मत डाले।
अर्थ- किसी वस्तु के गलत प्रयोग होने की आशंका।

०५ :- छिया-छिया गप-गप।
अनुवाद- छी-छी गप-गप।
अर्थ- किसी वस्तु को खराब भी कहना और उसका उपयोग भी करना।

०६ :- बाबा के धियवा लुगरी अउरी भइया के धियवा चुनरी।
अनुवाद- दादा की बेटी लुगरी और भाई की बेटी चुनरी।
अर्थ- बुआ से अधिक मान बहन का होने पर कहा जाता है। यानि जो रिस्ते में जितना करीब उसका उतना ही मान।

०७ :- सबकुछ खइनी दुगो भुजा ना चबइनी।
अनुवाद- सब कुछ खाया दो भुजा न चबाया।
अर्थ- भरपेट खाने के बाद भी इधर-उधर देखना कि कुछ खाने को मिल जाए।

०८ :- हाथी आइली हाथी आइली पदलसी भढ़ाक दे।
अनुवाद- हाथी आयी, हाथी आयी पादी भढ़ाक दे।
अर्थ- अफवाह फैलने पर कहा जाता है यानि झूठी बात।

०९ :- जवन रोगिया के भावे उ बैदा फुरमावे।
अनुवाद- जो रोगी को अच्छा लगे वही वैद्य बतावे।
अर्थ- किसी को वही काम करने को कहना जो उसको अच्छा लगे।

१० :- आन की धन पर कनवा राजा।
अर्थ- दूसरे की वस्तु पर अपना अधिकार समझना।

११ :- बड़ के लइका पादे त बाबू के हवा खुली गइल अउरी छोट के
पादे त मार सारे पदले बा ।
अनुवाद- बड़ का लड़का पादे तो बाबू का हवा खुल गया और छोट का पादे तो मार साला पाद दिया।
अर्थ- बड़ को इज्जत और छोट का अपमान।

१२ :- बुढ़वा भतार पर पाँची गो टिकुली।
अनुवाद- बुढ़े पति पर पाँच टिकली।
अर्थ- वह काम करना जिसकी आवश्यकता न हो।

१३ :- बेटा अउरी लोटा बाहरे चमकेला।
अनुवाद- पुत्र और लोटा बाहर ही चमकता है।
अर्थ- जैसे लोटे का बाहरी भाग चमकता है वैसे ही पुत्र घर के बाहर नाम रोशन करता है यानि इज्जत पाता है।

१४ :- खेतिहर गइने घर दाएँ बाएँ हर।
अनुवाद- खेतिहर गए घर दाएँ बाएँ हल।
अर्थ- मालिक के हटते ही काम करनेवाला कामचोरी करे।

१५ :- खेत खा गदहा अउरी मारी खा जोलहा।
अनुवाद- खेत खाए गदहा और मार खाए जोलहा।
अर्थ- गलती करनेवाले को सजा न देकर किसी और को देना।


Thursday, April 16, 2015

जय माँ तरकुलहीं देवी

तरकुलहाँ देवी

१८५७ के स्वतंत्रता संग्राम से पहिले के बात ह, ओह समय एह इलाका से गुर्रा नदी होके गुजरत रहे, जंगल एतना भयंकर कि दिन में भी सूरज के प्रकाश ना दिखे, एह जंगल से होके गुजरे खातिर आम लोग-बाग़ त डेराईबे करे साथै-साथ अंग्रेज के सिपाही भी डेरा, एही जंगल में डुमरी रियासत के बाबु बंधू सिंह रहत रहें | नदी के किनारे तरकुल के ढेर सारा पेड़ रहे, ओही पेड़न के नीचे बाबु बंधू सिंह माटी के पिंडी बना के अपने इष्ट देवी के पूजा करत रहनें, एही से एह जगह के नाम तरकुलहाँ देवी के नाम से पूरा भारत में प्रसिद्ध हो गईल | अंग्रेजन के अत्याचार दिन पर दिन बढ़त जात रहे, जनता आपन घर-बार छोड़ के जंगल में पनाह लेवे लागल रहे | बाबु बंधू सिंह बचपन से ही अंग्रेजन के अत्याचार देखत चली आईल रहने, उनके दिल में अंग्रेजन के खिलाफ नफ़रत पैदा हो गईल रहे, एह लिए उ लड़ाई के हर विधि सीखत रहने की समय आयिले पर अंग्रेजन से आपन जनता पर होत अत्याचार के बदला ले सकें, धीरे-धीरे बाबु साहब गुरिल्ला लड़ाई में माहिर हो गईलें और जब बढ़हन हो गईलें त आपन रियासत छोड़ के गोरखपुर से २५ किलोमीटर दूर चौरी-चौरा के पास के जंगलन में चली आईने, एहंवे उ अपने इष्ट देवी के पूजा करे लगने और जइसे ही मौका पावें अंग्रेजन पर अकेले हमला कर दें, उनकर शिकार उ अंग्रेज होंखें जवन ओह जंगल में आवें चाहे ओसे होके गुजरें | बाबु साहब न बस ओ अंग्रेजन के मरबे करीं बल्कि उनकर सर काट के अपने इष्ट देवी के चरण में अर्पित कर देईं | अइसे करत बहुत समय हो गईल एह बीच अंग्रेज इ समझें कि उनके सिपाही जंगल में जा के बिला जात हवें आ जंगली जानवरन के शिकार हो जात हवें | धीरे-धीरे अंग्रेजन के एह बात के पता चल गईल कि कवनो जानवर ना बल्कि इन्सान उनकर सिपाही सब के मारत हवें, अंग्रेज जंगल के कोना-कोना छान मरलें लेकिन बाबु साहब के ना पयिलें |अंग्रेज एक तरफ जायीं त बाबु साहब दुसरे ओर चलीं जायीं, आखिर एगो व्यापारी के मुखबिरी के चलते एक दिन बाबु बंधू सिंह जी धरा गईलें |

बाबू बंधू सिंह स्मारक

अंग्रेज उहाँ के पकड़ के अदालत में ले गयिने जहवां उहाँ के फंसी के सजा सुनावल गईल, १२ अगस्त १८५७ के उहाँ के गोरखपुर में अली नगर चौराहा पर सबके सामने फांसीं पर लटकावे के परयास कईल गईल | जइसे ही जल्लाद खटका खींचे उ खिंचाईबे न करे, पर जब उहाँ के हटा के बालू के बोरा लटका के दोबारा कोशिश कईल जा त खटका खिंचा जा और बोरा रसरी से लटक जा, लेकिन बाबु साहब के जब खड़ा कर के खींचल जा त खिचाईबे न करे | ६ बार उहाँ के हटा के बालू के बोरा लटका के कोशिश कईल गईल लेकिन हर बार उहे हाल | अंग्रेज परेशान पूरा जनता सामने खड़ा होके हंसत रहे और बाबु बंधू सिंह जी फंसी के तख्ता पर खड़ा होके मने-मन मुसकुरात रहनी, जब सातवीं बार उहाँ के फंसी के रसरी से बांधल गईल त उहाँ के खुद अपने इष्ट माता तरकुलहाँ देवी से विनती कईलीं की " हे माँ अब हमार मन एह दुनिया से उब गईल बा, एह लिए अब हमके अपने पास बोला लीं " | अउर एह बार में खटका खुल गईल और बाबु साहब फंसी पर झूल गईलीं | कहल जाला कि जवने समय बाबु साहब फंसी पर लटकनि ओही समय देवी माँ के पिंडी के पास खड़ा तरकुलन में से एगो तरकुल के उपरी भाग टूट गईल अउर ओम्मे से खून बहे लागल, एह खून से पास में बहत नदी के पूरा पानी लाल हो गईल |

माता का मन्दिर


आजादी के बाद आज भी तरकुलहाँ देवी के मान्यता अउर बढ़ गईल, अब उहाँ बाबु बंधू सिंह के याद में एगो स्मारक बना दिहल गईल बा लेकिन उपेक्षा के कारन ओहू के हालत ख़राब बा | तरकुलहाँ देवी के आशीर्वाद आज भी एह क्षेत्र में बसल लोगन के साथ बा | तरकुलहाँ देवी  या आकाशकामिनी माता आज भी गछवाहा समुदाय के इष्ट देवी हई जवन की आज भी तरकुल से ताड़ी उतारे के काम करे ला | तरकुलहाँ देवी मंदिर के दुसर विशेषता इहाँ मिले वाला मीट के परसादी हवे | बलि चढ़वले के जवन परंपरा बाबू बंधू सिंह शुरू कईले रहनी उ परंपरा आज भी इहाँ जियत बा | आज बलि इन्सान के ना बल्कि बकरा के चढ़ेला, बकरा के बलि चढ़ा के माटी के बर्तन में पका के साथ में लिट्टी के साथे परसादी के रूप में दिहल जाला | इहाँ के एगो और विशेषता हवे कहल जाला की मीट वाला परसादी के घरे ना ले जाए के चाही अगर बच जात बा त ओही जा गरीबन के खिया देवे के चाहीं अगर घरे लावे के कोशिश करल जाई त उ घरे तक ना पहुच पायी  अगर आप अपने घर से कुछ नईखी ले गईल तब्बो घबराईं ना इहाँ आपके माटी के बर्तन, गोइंठा, तेल से लेके गरम मसाला तक हर चीज मिल जाई | इहाँ के बलि प्रथा के बंद करावे के खातिर कोर्ट में केस चलत बा | साल में एक बार इहाँ चइत रामनवमी से लेके सावन के नाग पंचमी तक मेला लागेला, अउर हाँ मन्नत पूरा होखले पर घंटी बंधले के रिवाज ह जवने वजह से पूरा मंदिर में जगह जगह पर घंटी बंधल मिल जाई | इहाँ सोमवार और शुक्रवार के बहुत भीड़ होला |

जय माँ तरकुलहीं देवी

Sunday, April 12, 2015

परम-पूज्य देवरहा बाबा

जब जार्ज पंचम भारत आवे वाला रहने तब उ अपने भाई से पूछने कि "भारत के साधू-संत सही में महान होवेलें ?" तब प्रिंस फिलिप कहने कि "हाँ, कम से कम देवरहा बाबा त जरुर महान हईं, उनसे मुलाकात जरुर कर लिहा " | इ सन १९११ के बात हवे जार्ज पंचम भारत आईने अउर अपने पूरा लव लश्कर के लेके देवरहा बाबा से मिले पहुँच गईलें, ओह समय विश्वयुध्ध के खतरा मन्डरात रहे, अउर उनके भारत के लोगन के बर्तानिया हुकूमत के पक्ष में करे के रहे | उनसे भईल बात बाबा अपने कुछ शिष्यन के भी बतवले रहनी लेकिन आज केहू भी ओह बारे में बात करे के तैयार ना होला | जब डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद कवनो दू-तीन साल के रहनी त अपने माता-पिता के साथ बाबा के दर्शन करे पहुचनी, राजेन्द्र बाबु के देखते ही बाबा बोल पड़नी "इ बच्चा त राजा बनी" बाद में जब डॉक्टर साहब भारत के पहिला राष्ट्रपति बन गईनी त बाबा के एगो पात्र लिख के आपन कृतज्ञता प्रकट कईनी, अउर त अउर सन ५४ के कुम्भ के मेला में बाबा के सार्वजनिक रूप से पूजन भी कईनी | बाबा के भक्तन में लाल बहादुर शास्त्री जी, जवाहर लाल नेहरु, इंदिरा गाँधी अउर अटल बिहारी वाजपेयी तक के नाम शामिल हवे | पुरुषोत्तम दास टंडन जी के राजर्षि के उपाधि त बाबा के ही दिहल हवे |

परम-पूज्य देवरहा बाबा


परसिध्ध संत ब्रह्मर्षि योगिराज देवरहा बाबा के कर्मस्थली देवरिया जिला रहल | देवरिया क्षेत्र के जनता आज भी बाबा के दिल से शुक्रगुजार हवे कि परम मनीषी, योगीराज देवरहा बाबा देवरिया के माटी के ए लायक समझनी अउर ओके आपन निवास स्थान  बना के अपने पवन चरण से पवित्र कर देहलीं, इतना ही ना बाबा अपने ध्यान अउर योग के बारिश से जनमानस के सराबोर कर दिहनीं | बाबा के ही कृपा रहे कि आज देवरिया जिला विश्व पे छा गईल बा | बाबा के ब्रह्म में विलीन भयिले के लगभग अढ़ाई दसक के बाद भी श्रद्धालु उहाँ के इश्वरी गुणन के चर्चा करत ना अघाने | बाबा के असली निवास के बारे में केहू के कुछ ना पता हवे, कहल जाला कि बाबा कहीं बाहर से आईल रहनी, अउर सलेमपुर तहसील से करीब एक कोस दूर मईल में सरयू नदी के किनारे एगो मचान पर आपन डेरा जमा लेहनी | बाबा के उमर के बारे में कुछ न पता रहे ना ही कवनो अंदाजा रहे, उहाँ के पतंजलि के अष्टांग योग में महारत हासिल रहे खास कर के खेचरी मुद्रा के कारन अपने भूख पर भी बाबा के नियंत्रण रहे जवने वजह से उहाँ के केहू कब्बो कुछ खात ना देखले रहे, खेचरी के कारन ही बाबा के आयु पर भी नियंत्रण रहे अउर उहाँ के उमर ९०० से लेके २५० साल तक के बतावल जात रहे | इलाहाबाद के एगो वकील के अनुसार त बाबा उनकर परिवार के ७ पीढ़ी के आशीर्वाद देवत आईल रहनी |

दया के महासमुद्र बाबा आपन इ संपत्ति खुला हाँथ से सबपर बिना कवनो भेद-भाव के लुटयिनी | अइसन मानल जाला कि बाबा के आशीर्वाद हर बीमारी के दवाई रहे, इहो कहल जाला कि बाबा देखते ही समझ जात रहनी की सामने वाला के कवन सवाल ओके परेशान करत हवे | दिव्यदृष्टि के साथ तेज नजर, कड़क आवाज में खुल के हंसल अउर खूब बतियावल बाबा के आदत रहे | बाबा के जीवन एकदम सादा रहे, भोरे में ही स्नान कर के ध्यान में लीन हो जायीं अउर मचान पर बैठ के अपने भक्तन के ज्ञान के प्रसाद बाल शुरु कर देईं, लकड़ी के चार खम्भा पर बनल मचान ही उहाँ के महल रहे | साल के ८ महिना अपने महल में रहले के बाद कुछ दिन बनारस के रामनगर में गंगा जी के बीच में, माघ में प्रयाग में, फागुन में मथुरा के माँठ में अउर कुछ समय हिमालय के गोंद में भी बितायीं | नर्मदा के अमरकंटक में एक आंवला के पेड़ के नीचे रहले के कारन बाबा के एगो नाम अमलहवा बाबा भी पड़ गईल रहे |

मथुरा के माँठ में रहत समय एक बार प्रधानमंत्री राजीव गाँधी जी के बाबा के दर्शन करे खातिर आवे के रहे | सुरक्षा के तगड़ा प्रबंध कईल जात रहे अउर इलाका के रेकी होत रहे, ऐसे में हैलीपैड बानवे खातिर एगो बबुल के पेड़ के काट छांट कईले के जरुरत महसूस होत रहे, निर्देश दिहल जा चुकल रहे कि अचानक से बाबा के पता चलल, बाबा एगो पुलिस वाला के बुला के पूछनी कि इ पेड़ काँहे कटाई | जवाब मिलल कि सुरक्षा के वजह से जरुरी बा, बाबा फिर कहनी कि तू इहंवा प्रधानमंत्री के खातिर पेड़ काट के अपने कर्तव्य के पालन कर देबअS, प्रधानमंत्री के भी नाम होई की साधू-संत के पास गईल रहने, लेकिन एह सब के दंड इ बेचारा पेड़ काहें भुगते | जब इ हमसे पूछी त हम का जवाब देब, नाही इ पेड़ नहीं कटाई | प्रशासन में हडकंप मच गईल दिल्ली से आवे वाला अफसरान के फैसला रहे एह लिए एके काटही के पड़ी | मगर बाबा एह बात खातिर तैयार ना रहनी कहनी कि इ पेड़ होई तोहन लोगन के नजर में हमार त सबसे पुरान शिष्य हवे हमसे बात करेला, पेड़ ना कटी | अफसर हैरान परेशान की अब का कईल जा | दया के महासमुद्र बाबा के दिल पसीज गईल अउर पूछनी की प्रधानमंत्री के कार्यक्रम टल जा तब | लेकिन अफसर एह बात से भी परेशान कि आखिर अइसन कैसे हो सकेला, फिर बाबा कहनी कि परेशान मत होख, कार्यक्रम टल जाई | अउर आश्चर्य कि दू घंटा के बाद ही प्रधानमंत्री के आफिस से रेडिओग्राम आ गईल कि कार्यक्रम टल गईल बा | कुछ ही हफ्ता के बाद आखिरकार प्रधानमंत्री राजीव गाँधी जी आईनी लेकिन एह बार ओ पेड़ के काटे के जरुरत ना पडल | अइसन रहनी परम पूज्य देवरहा बाबा |


अचानक ११ जून १९९० के जब बाबा मथुरा में रहनीं तब उहाँ के दर्शन दिहल बंद कर देहनी, लगत रहे कि कुछ अनहोनी घटे वाला बा, मौसम बदल गईल अउर यमुना के लहर बेचैन होखे लागल | आखिर १९ तारीख के मंगलवार योगिनी एकादशी के दिन आसमान में काला बदल छा गईल अउर यमुना के लहर जैसे बाबा के मचान तक पहुचे लागल, एह सब के बीच शाम के ४ बजे बाबा के शारीर स्पंदन रहित हो गईल, प्रकृति के साथ भक्तन के आपर भीड़ भी हाहाकार करे लगनें | बर्फ के सिल्ली लगा के बाबा के शरीर के सुरक्षित रखे के प्रयास भईल | तब तक बाबा के ब्रह्मलीन होख्ले के खबर देश विदेश में फ़ैल चुकल रहे कि अचानक बाबा के सर में स्पंदन महसूस भईल अउर बाबा के ब्रह्मरंद्र खुल गईल, जवने के फूल से भरले के परयास भईल लेकिन बाबा के शिष्य देवदास के पूरा कोशिश कईले के बाद भी ना भरल जा सकल |आखिरकार , दू दिन के बाद बाबा के देह के ओही सिद्धासन-त्रिबंध मुद्रा में जवने में बाबा बैठल रहनी के स्थिति में यमुना में प्रवाहित कर दिहल गईल |