Tuesday, October 28, 2014

किरिनियाँ कहाँ चलि जाले? - अनिरुद्ध तिवारी 'संयोग'

सारी सोनहुली सबेर झमका के,
सँवकेरे रूप के अँजोर छिटिका के,
जाये का बेर ढेर का अगुताले-
किरिनियाँ कले-कले कहाँ चलि जाले?

चलत-चलत बीच रहिया में हारल,
दुपहरिया तेज तिजहरिया के मारल,
धनि बँसवरिया का पाछे लुकाले!
किरिनियाँ कले-कले कहाँ चलि जाले?

दिनभर का जिनगी के कहते कहनियाँ,
जात कहीं फुनुगी पर छोड़त निशनियाँ,
काहे दो सकुचाले काहे लजाले!
किरिनियाँ कले-कले कहाँ चलि जाले?

चिरई-चुरुंगवा जे लेला बसेरा,
डाले चराऊर खोंता में डेरा,
सँझलवके नदिया किनारे नहाले!
किरिनियाँ कले-कले कहाँ चलि जाले?

Thursday, October 23, 2014

पर्व मेला - गोवर्धन पूजा (चौथा दिन)

       भारतीय पर्वन में मानव के प्रकृति के साथ सीधा संबंध दिखाई देला, अउर एह बात के सबसे बधन सबूत ह गोवर्धन पूजा या गोधन | कातिक महीना के शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा के दिन गोधन मनावल जाला | एह दिन बलि पूजा, अन्न कूट, मार्गपाली भी मनावल जाला | अन्नकूट या गोधन में गाय, बैल आदि पशुअन के नहवा के फूल माला, धुप, चन्दन आदी से उनकर पूजा कईल जाला | गोबर से गोवर्धन पर्वत बना के जल, मौली, रोली, चावल, दही, फूल, और तेल के दिया जला के पूजा और परिक्रमा कइल जाला | शास्त्रों में कहल गइल बा की गाय वैसे ही पवित्र होले जैसे की नदीयों में गंगा, साथ ही साथ गाय के देवी लक्ष्मी के स्वरुप भी कहल गइल बा | जवने तरे देवी लक्ष्मी अपने भक्तन के सुख-समृद्धि डेली वैसे ही गाय ओने दूध से इंसान के स्वास्थ्य रुपी धन प्रदान करेली | एही से गाय के प्रति श्रद्धा प्रकट करे के खातिर ही कार्तिक शुक्ल के प्रतिपदा के दिन गोवर्धन या गोधन पूजा कइल जाला | ऐसे जुडल एगो पौराणिक कहानी भी हवे |

        कहानी इ हवे की एक बार देवराज इन्द्र के अभिमान हो गइल | इन्द्र के अभिमान तूरे खातिर भगवान श्री कृष्ण जी एगो लीला रचनी | एक दिन जब पूरा ब्रज मंडल कवनो पूजा के तयारी करत रहे त, इ देख के बल गोपाल जी अपने मैया यशोदा से पुछली की इ का होता ? मैया यशोदा उहा के बतावली की, लल्ला हमहन के देवराज इन्द्र के पूजा खातिर अन्नकूट उत्सव के तैयारी करत बानी के | इ सुन के भगवान कृष्ण जी बोललीं की मैया हमहन के इन्द्र के पूजा कहे करेनी के ? तब मैया यशोदा कहली की इन्द्र वर्षा के देवता हवे और उ वर्षा करेनS जेसे की अन्न के पैदा होला और उनसे हमहन के गैयन के चारा भी मिलेला | तब कृष्ण जी बोलली की तब त हमहन के गोवर्धन पर्वत के पूजा करे के चाही कहे से की हमहन के गई कुल त उहे चरेली सब, एही से त गोवर्धन पूजनीय हवे और इन्द्र त कब्बो दर्शन भी नाही देले और पूजा न कइले से नाराज भी होले | अतः अइसन अहंकारी के पूजा कइले के का फायदा और करे के भी नाही चाही |

       लीलाधरी कृष्ण के माया से और लीला से सब इन्द्र के बदले गोवर्धन पूजा कइले | इ देख के इन्द्र क्रोधित हो के अपने अपमान के बदला लेवे खातिर घनघोर वर्षा शुरू कर दिहले | तब मुरलीधर कृष्ण सबके बचावे के खातिर अपने कानी उंगली पर पूरा के पूरा गोवर्धन पर्वत ही उठा लेहनी और सब व्रजवासियन के अपने अपने गायन के साथे अपने सरन में ले लिहनी | इ देख के इन्द्र और क्रोधित होके और घनघोर बारिश करे लगनS | तब भगवान कृष्ण सुदर्शन चक्र के गोवर्धन के ऊपर लगा के वर्षा के पानी के नियंत्रित कइनी और शेषनाग के मेड बना के पानी के पर्वत के ओर आवे से रोक दिहली |

       लगातार सात दिन के वर्षा के बाद इन्द्र के अहसास भइल की कृष्ण कवनो साधारण आदमी न हवे | तब उ ब्रह्मा जी के पास गइने, ब्रह्मा जी उनके पूरा सच्चाई बतवली की कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार और पूर्व के पुरषोत्तम नारायण हवे | तब इन्द्र के अभिमान टूट गइल तब उ कृष्ण के शरण में जाके माफ़ी मंगले और उनकर पूजा कर के भोग भी लगवले |

       ए पौराणिक घटना के बाद से ही गोवर्धन पूजा शुरू भइल | व्रजवासी एही दिने गोवर्धन के पूजा करेले, और गाय, बैल के नहवाके उनके रंग लगा के सजावल जाला और उनके गटइ में नया रसरी दलाल जाला | गाय और बैल के गुड चावल खिया के उनकर सम्मान और पूजा कइल जाला | त हवे न गोधन प्रकृति से जुडल पर्व |

Wednesday, October 22, 2014

पर्व मेला - दीपावली (तीसरा दिन)

त्योहर और उत्सव हमहन के जीवन के सुख और हर्षोल्लास के प्रतीक होला जवन की समय के अनुसार अपने रूप-रंग और आकार में अलग-अलग होला | त्यौहार मनावे के विधि-विधान भी अलग हो सकेला पर एकर अंतिम अभिप्राय कवनो विशेष आस्था के संरक्षण या फिर आनंद के प्राप्ति होला | सब त्योहरन से कवनो न कवनो पौराणिक कहानी जरुर जुडल होला, अउर ए सब कहानी कुल के संबंध तर्क से न होकर अधिकतर आस्था से होला | इहो कहल जा सकेला की पौराणिक कहानी प्रतीकात्मक होलापर उनकर मकसद आम इंसान के इ बतावल होला की हमेशा बुराई पर अच्छाई के विजय होला | और साथ ही साथ में आम इंसान के पाप और अधर्म से बचावल भी होला |


दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें


कातिक महीना के अमावस्या के दिन दिवाली के त्यौहार मनावल जाला | 'दिवाली' के 'दीपावली' भी कहल जाला | मूल रूप से दिवाली अकेला त्यौहार न होके पांच पर्व के एगो श्रृंखला हवे | लगातार पांच दिन, दिवाली से दो दिन पहले से लेके दिवाली के दो दिन बाद तक के पांच दिन | धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दिवाली, गोवर्धन पूजा और यम द्वितीया या भैया दूज | ए सब पर्व से जुडल अलग-अलग कहानी भी बा |

पांच पर्व के श्रृंखला में दिवाली मुख्य दिन हवे, जेके रोशनी के पर्व के रूप में कातिक महीना के अमावस्या के मनावल जाला | दीपावली दो शब्द से मिल कर बनेला 'दीप' और 'अवली', जेमे की 'दीप' के अर्थ हवे 'दिया' और 'अवली ' के मतलब होला 'पंक्ति', मतलब 'दीपावलीके मतलब भइल 'दिया के पंक्ति' | दीपावली के ही बिगडल रूप दिवाली हवे |

अपने देश के हिंदू लोगन के सबसे बडहन त्यौहार हवे दिवाली, जेसे जुडल अनेक पौराणिक कहानी कहल जाला | जेमे की सबसे प्रचलित कहानी के अनुसार देश के उत्तरी भाग में दिवाली के पर्व भगवान श्री रामचंद्र के द्वारा राक्षसराज रावण के वध कइले के बाद वापस अयोध्या लौटले के खुशी में मनावल जाला | महर्षि वाल्मीकि के द्वारा लिखल ग्रन्थ रामायण के अनुसार अयोध्या के राजकुमार राम अपने विमाता कैकेयी के इच्छा और पिता दशरथ के आज्ञानुसार १४ साल के वनवास काट के और लंकानरेश रावण के वध कर के एही दिने अपने पत्नी सीता, छोटहन भाई लक्ष्मन और भक्त हनुमान जी के साथे अयोध्या लौटल रहन, और उनके स्वागत में पूरा नगर के दिया जला के सजावल गइल रहे | ओही समय से दिया जलाके, पटाखा  फोड़ के और मिठाई बाँट के ए शुभ दिन मनावे के परंपरा शुरू भइल |

एगो अन्य मान्यता के अनुसार दिवाली के दिने ही माता लक्ष्मी जी दूध के सागर से, जेके की 'केसर-सागर' अथवा 'क्षीर-सागर' भी कहल जाला से उत्पन्न भइल रहनी | उत्पत्ति के बाद माता लक्ष्मी जी सारा संसार के प्राणीयन के सुख-समृधि के वरदान दिहली, एही से दिवाली पर माता लक्ष्मी जी के पूजा कइल जाला | अउर इहो मान्यता ह की पूरा श्रध्दा से पूजा कइले से माता लक्ष्मी जी अपने भक्तन पर खुश होके उनके धन-सम्पदा और वैभव से भर देनी |


एकरे अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्रन में दिवाली के दिने के फसल के कटाई के पर्व के रूप में भी मनावल जाला | एह समय तक फसल के कटाई के बाद किसान के हाँथ में धन आ चुकल होला, एही से उ, ओ धन के माता लक्ष्मी जी के चरण में अर्पित कर के त्यौहार के खुशी भी मनावल जाला | दिवाली के अवसर पर माता लक्ष्मी जी अपने वाहन उल्लू पर सवार होके निकलेली और रौशनी से डूबल घरन में प्रवेश करेली |

Tuesday, October 21, 2014

पर्व मेला - नरक चतुर्दशी ( दूसरा दिन)

धनतेरस के अगला दिन यानी की कातिक के कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी के नरक चतुर्दशी के नाम से जानल जाला | एके नरक चौदस, रूप चौदस, रूप चतुर्दशी, नर्क चतुर्दशी आ नरका पूजा के नाम से भी जानल जाला | एके छोटा दिवाली भी कहल जाला | एही दिन मौत के देवता यमराज जी के भी पूजा कइल जाला | एके छोटी दिवाली कहल जाला, काहे से की दिवाली के ठीक एक दिन पाहिले रात में ओही तरह से दिया के रौशनी से रात के अन्धकार के भगावल जाला जैसे की दिवाली के राती के भगावल जाला | एह दिन के बारे में भी कई तरह के कहानी और पौराणिक लोकमान्यता बा |

नरक चतुर्दशी की हार्दिक शुभकामनायें


भारतीय संस्कृति में हर त्यौहार के काउनो न काउनो कहानी अ लोकमान्यता जुडल हवे | हर कहानी के अंत में कुछ संदेसा भी हवे जेसे की आम जनता के परिचित करावल जाला | हर पौराणिक मान्यता और कहानी के अंत हमेशा बुराइ पर अच्छाई के विजय या आम जनता के कउनो बुरा काम से रोके से होला | अइसही नरक चतुर्दसी के कहानी से आम जनता के इ सन्देश दिहल जाला की अनजाने में भी भी कइल गलती के परिणाम बुरा होला | पर अगर इंसान अच्छा काम करे त उ ओकर परिणाम के बदल सकेला | नरक चतुर्दशी से जुडल कहानी कुछ ए तरह से हवे |

रन्ति देव नाम से एगो रजा रहले बहुत ही पुण्यात्मा, धर्मात्मा और दयालु | हमेशा ही धर्म- कर्म और परोपकार काम में लागल रहे वाला इंसान रहनS | जब उनकर अंतिम समय आइल त यमराज के दूत उनके लेवे खातिर आ गईने | और राजा के लेके नरक में जाए लगने | यमदूत के अएसन करत देख के राजा चौक गईने और उनसे पूछने की हम त कब्बो कौनो अधर्म आ पाप नाही कइनी त फिर आप लोग हमें नरक में कहे ले जात बानी | कृपा कर के हमके हमार अपराध बताई जवने कारन हमके नरक में जाए के पडत बा ? अएसन कौन भरी अपराध हो गइल हमसे की आज हमके नरक में जाए के पडत बा ?

राजा के दुःख भरल बात सुन के यमदूत के दिल पसीज गइल और उ कहने की, हे राजन एक बार तोहरे दरवाजा पर से एगो भूखाइल बाभन लौटल रहे एही से तोहके नरक जाए के पडत बा | बस एगो भूखाइल बाभन न खियइले से नरक ! मतलब की कउनो भूखाइल के खाना खियावल केतना बढहन पुन्य के काम ह | इ बात सुन के राजा यमदूत से विनती कइले की हमके बस एक साल के और समय दे दीं जेसे की हम आपन बुरा काम ठीक कर सकी | यमदूत सोच विचार कर के राजा के आयु एक साल और बढा़ दिहले | यमदूत के जइले के बाद राजा इ समस्या के लेके कई ऋषियन के पास पहुचली और सारा बात बता के इ समस्या के निदान पुछली | ऋषि लोग बहुत सोच विचार कईली और फिर राजा से कहली की, हे राजन आप कृष्ण चतुर्दशी के व्रत करीं | और ब्राह्मणों के खाना खिलाई और उनसे अपने अपराध के क्षमा मांगी अगर उ लोग आपके माफ कर देइब त आ आप ए पाप से मुक्त हो सकेली |

राजा रन्ति, जइसन ऋषि लोग कहले रहनी वइसने ही कएली और कृष्ण चतुर्दशी के व्रत रखनी, देश भर के ब्राह्मण के बुला के खाना खिलइली और उनसे अपने अपराध के माफी भी मांग लेहनी | एह तरे राजा अपने ए पाप से मुक्त होके विष्णु लोक में स्थान पइली | तब्बे से हर तरह के पाप से मुक्ति पाए खातिर कार्तिक चतुर्दशी के व्रत प्रचलित हो गइल |


एगो और कहानी के अनुसार भगवान कृष्ण एही कातिक महीना में चतुर्दशी के दिन नरकासुर के वध कर के देवताओ और ऋषियों के ओकरे आतंक से मुक्ति दिलवनी | एकरे साथ ही साथ श्री कृष्ण सोलह हजार कन्याओ के भी नरकासुर के कारागार से मुक्त करइली | एही के उपलक्ष्य में नगर के निवासी पूरा नगर के दिया से सजा के नरकासुर नाम के अँधेरा के दूर होखले के खुशी मनवले | तब्बे से नरक चतुर्दशी के त्यौहार मनावल जाये लागल |

Monday, October 20, 2014

पर्व मेला - धनतेरस (पहिला दिन)

दिवाली के शुरुआत होला कार्तिक महीना के कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी के दिन से | ऐ दिन के धनतेरश भी कहल जाला | इ दिने आरोग्य के देवता धनवंतरी के आराधना होला और नया- नया बर्तन, आभूषण आदी चीज खरीदले के भी रिवाज़ हवे | आज के दिन घी के दिया जला के माता लक्ष्मी के बुलावल जाला |

धनतेरश यानि की धन त्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरी के भी पूजा कइल जाला | भगवान धनवंतरी देवताओ के डाक्टर यानी की वैद्य भी मानल जालें | इनकर पूजा कइले से आरोग्य-सुख यानी की स्वस्थ्य लाभ मिलेला | शास्त्रों में लिखल कहानी के अनुसार आज के ही दिने समुन्द्र मंथन से भगवान धनवंतरी अपने हाथे में अमृत के कलसा ले के प्रकट भइल रहने | धनवंतरी के भगवान विष्णु के अंशावतार भी मानल जाला | कहल जाला की संसार के चिकित्सा विज्ञान बतावे के खातिर भगवान विष्णु धनवंतरी के अवतार लिहनी |


धनतेरस के हार्दिक शुभकामना


एगो दूसर कहानी भी प्रचलित हवे एह दिन के बारे में | कहल जाला की एक बार भगवान विष्णु मृत्युलोक में घुम्मे खातिर आवत रहनी त माता लक्ष्मी जी भी उहा से साथे चले के आग्रह कइनी तब विष्णु जी कहनी की ठीक बा, लेकिन जइसन हम कहब वइसन ही करे के पड़ी | लक्ष्मी जी उहा के बात मान गइनी और भगवान विष्णु जी के साथे मृत्युलोक पर घुम्मे खातिर अइनी | कुछ देर के बाद एगो जगह पर पहुच के विष्णु जी कहनी की जब तक हम न आई तब तक आप यही रुकी | हम दक्षिण दिशा के ओर जात बानी, लेकिन आप उधर मत आइब |

लक्ष्मी जी के चंचला अइसे ही ना कहल जाला उ चंचल-मन हईं | त चंचल-मन कहा माने वाला रहे लगनी सोचे की आखिर ओ दिशा में अइसन का बा की हमके मन कर दिहनी ह और खुदे गइनी ह | लक्ष्मी जी भी लगनी पीछे-पीछे जाये, कुछे दूर गइले पर एगो सरसों के खेत मिलल जेम्मे की फूल लागल रहे | सरसों के फूलाइल खेत के शोभा और महक से बहक के लगनी फूल तूर-तूर के आपन श्रृंगार करे | फिर आगे बढ़नी त गन्ना के खेत मिलल इहा भी गन्ना तूर के रस चुभे लगनी | ओही समय भगवान विष्णु जी आ गइनी और लक्ष्मी जी के उहा देख के गुस्सा हो गइनी और शाप देहली की जवनव किसान के आप चोरी कइले बानी ओकर १२ साल ले सेवा करीं | इहा देखे वाला बात बा की चोरी एगो अइसन अपराध ह की ओकर सजा भगवान के भी मिलल |

त शाप देके त भगवान विष्णु जी आपन लोक चल गइनी पर अब लक्ष्मी जी के ओ किसान के घरे रहे के पडल | अब अगर साक्षात लक्ष्मी जी जहा रहब उहा त धन धान्य और खुशहाली अइबे करी | इहे भइल किसान के घरे भी ओ किसान के घर खुशहाली से भर गइल और धन सम्पदा के कवनो ओर-छोर ना रहल | किसान के १२ साल बड़ा आनंद से कटल लेकिन जब १२ साल के बाद भगवान विष्णु जी माता लक्ष्मी जी के वापस लेवे खातिर अइनी त किसान उहाँ के वापस भेजे से मना कर दिहलस | तब माता लक्ष्मी जी कहली की अगर हमके रोकल चाहत बानी त जइसन हम कहत बानी वइसन करीं | कल तेरस के दिने तू आपन घर लीप पोत के साफ़ करअ | रात में घी के दिया जला के रखिह शाम के हमार पूजन करिह और एगो तम्बा के कलश में पैसा रख के रख दिह हम ओही में रहब लेकिन दिखाई ना देब | एह एक दिन के पूजा कइले से हम साल भर तोहरे घरे से नाही जाइब | एतना कही के उ चली गइनी | अगला दिने किसान लक्ष्मी जी के कहले अनुसार पूजन कइलसऔर ओकर घर हमेशा खातिर धन धान्य से भर गइल | एही से हर साल तेरस के दिने लक्ष्मी जी के पूजा कइल जाला |

Friday, October 17, 2014

देखत मौत के अब लजाइल का बानी - नागेन्द्र प्रसाद सिंह

देखत मौत के अब लजाइल का बानी
जो जाहीं के बा, त तवाइल का बानी

करे के रहे जे, ऊ सब हो गइल बा
किनाने चहुँप के छछाइल का बानी

बहुत दूर उड़लीं अकासे-पताले
करीं थिर मन के हहाइल का बानी

बहुत दिन पटवलीं लगावल बगइचा
तजीं मोह-माया, सुखाइल का बानी

जे बा मोटरी माथ पर ओके फेंकीं
करीं मन हलुक अब दबाइल का बानी

हँकारत बा मउअत खड़ा हो दुआरे
दुबुक घर का भीतर लुकाइल का बानी

Tuesday, October 14, 2014

समझौता – शारदा नन्द प्रसाद

अदमी के तूर देवे वाला अन्हार भीतर-बाहर सगरो छावल रहे | अइसन उजुग हो गइल कि केतनो किचकिचा के आँख मुनले पर नीन के नाव ना |

अकेल परले पर आदमी के बुझाला कि हर जड़ बस्तु चेतन हो गइल बा | खेत के झूर भूत आ रसता के रसरी साँपे नियर लागेला | आस्ते-आस्ते जब इतमिनान होला त बुझाला कि हमहू जियतानी | जिनगी भर के छितराइल बात के आदमी ठीकरा अइसन बटोर लेला अ कवनो बेवस्था के जिनगी जियला के अहसान ओकरा होखे लागेला |

हाथ में लाल लाल चूरी, नाक में झुंझी देह पर सुगवा रंग के सारी अउर मन में ओह दिन के बात जवन डोली में चढ़े के बेर सुसुकत सुनाइल रहे “गोइयाँ हमार तोहार नन्हे के पिरितिया, पिरितिया जनि छोडीह हो गोइयाँ” रील नियर उभरल जात रहे |

इ बात माटी के तेल नियर गाँव भर में पसर गइल कि उ ससुरा से भाग आइल | ओकरा माई के बूझे में इचिको देर ना लागल | ससुरा वाला जियत माटी पोंछे के तैयार ना रहलेसन |

“ अपना करेज खातिर नु सगरी अघावत करे के परता | एगो समय रहे जे एगो छन बिसारस ना , अब कुकुरो बरोबर नइखन गुदानत | मन त अइसन अंउतीयाइले बा कि कवनो एनर पोखर ध लीं “

सउसे दिन चढ गइल | अभी ले उठे के बेरा ना भइल | कवनो काम ना धन्धा | चार घरी दिन ले पटाइल रहतारे | चौबीसों घंटा आँख पर मलेछ घेरले रहता | सांचो कहल जाला “ ना छुतिहर फुटेला ना भूतहर मुएला ” |

कुछ बुदबुदइले आ खांसते उठके बइठ गइले | पुछलन “ भागेलुआ कहवा बा ? इहो ससुरा ढढू के पड़ा हो गइल, बाकिर एकरा तनिको होश हवास ना भइल | पत्ते ना चले, कहाँ रहेला, का करेला ? जब देख, त जुआ, जब देख त जुआ, जानू ओही से धरम करम चली | दुनो महतारी बेटा एक टेम बात ले नइखन सन करत | ना जाने, कहाँ कागज भुलाइल बा ? माया जवान ना करावे | बाकिर सोचिले कि हमर के बा | मार दि चाहे गरिया के दी, इहे नु पुछबो करी | अभिन लरिकवन उमरियो न बा, केतना दिन के भइबे कइल............”

Saturday, October 11, 2014

करवा चौथ - का सरगी अउर बया मिलल ?

करवा चौथ के पवित्र त्यौहार पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर-प्रदेश बिहार और मध्य प्रदेश में बहुत ही उत्साह से मनावल जाला | विवाहित महिला अपने पति के लंबा उम्र खातिर इ कठिन व्रत रखेंली | पूरा दिन बिना पानी और बिना फल आ कउनो अन्य आहार के रहल वास्तव में बहुत ही कठिन काम ह | अपने  पति के लंबा उम्र और सकुशलता के प्रार्थना खातिर इ व्रत विवाहित स्त्री द्वारा रखल जाला |




भारत एगो विभिन्नता में अनेकता वाला देश हवे अउर इ बात करवा चौथ के व्रत में बहुत ही आसानी से देखल जा सकेला | देश के अलग अलग हिस्सा में इ त्यौहार अलग अलग तरीका से मनावल जाला पर फिर भी एक्के जइसन परंपरा के पालन भी होला |

       करवा चौथ के व्रत के मान्यता भी बहुते हवे | कार्तिक महीना के कृष्ण पक्ष के चतुर्थी के दिने महिलाये अपने सुहाग के अमरता और खुशहाली खातिर रखेंली सब | पूरा दिन निराहार और बिना पानी के व्रत रखले के बाद रात में जब चंदा मामा दिखाई देलें त छलनी से उनकर दर्शन कर के पति के हाथ से पानी पी कि इ व्रत के खोलल जाला | आज कल अविवाहित स्त्री जिनकर शादी तय हो गइल बा उहो लोग इ व्रत रखत बानी सभे |

       करवा चौथ में तीन चीज के बहुत ही खास महत्व हवे सरगी, बया और करवा | इ तीनो आपस में मिल के न सिर्फ पति पत्नी में बाकिर उनके परिवार में भी प्यार और सद्भावना बढावेला |

       सरगी उ उपहार होला जवन कि सास के द्वारा अपने बहू के देवल जाला | विवाहित लड़की के करवा चौथ के दिने सुबेरे-सुबेरे उनकर सास एगो टोकरी में खूब ढेर के फल, मेवा और पारंपरिक व्यंजन रख के सरगी के रूप में अपने बहू के बहुत प्यार से देवेंली | अब सवाल इ उठेला कि अगर करवा चौथ निराहार और निर्जला व्रत हवे त इ सब देहले के का फायदा | फायदा हवे कि इ सब उपहार सुबेरे सूरज निकलले से पहिले-पहिले देवल जाला जेसे कि बहू एके खा के आपन व्रत शुरू कर सके | इ सब खईले के बाद दिन भर के उर्जा मिलेला और कमजोरी नहीं होला | पर अगर लड़की के अब्बे शादी नइखे भइल त इ उपहार ओकरे घरे एक दिन पहिलही पहूँचा दिहल जाला |

       अब अगर बात कइल जा बया के त बया लड़की के माँ के तरफ से दिहल गइल उपहार होला | बया में पैसा, कपडा, मिठाई और फल होला | इ उपहार ना सिर्फ लड़की खातिर होला बल्कि ओकरे पूरा घर वालन खातिर भी होला जेम्मे कि सास- ससुर, पति, ननद और देवर आवेलें | साथे-साथे लड़की के खातिर गहना और कपडा होला, इहे कपडा पहिन के लड़की रात में आपन पूजा करेले और व्रत खोलेले |

       सरगी और बया के बाद अब करवा के बात कइल जा, करवा एगो माटी के बर्तन होला | एही करवा के पूजा कइल जाला और साथ में इहो प्रार्थना भी कि पति पत्नी के प्रेम अटूट होखे | पति पत्नी के बीच में प्यार और विश्वास के नाजुक धागा कब्बो कमजोर न होखे | माटी के बर्तन एही से प्रयोग कइल जाला कि इ प्रतीक हवे नाजुकता के अगर माटी के बर्तन के हल्का सा भी ठोकर लागेला त उ फूट जाला और फिर दुबारा नहीं जोडल जा सकेला | एही से हमेशा इ प्रयास करे के चाहीं कि पति और पत्नी के प्रेम और विश्वास के कब्बो ठेस ना लागे |

Thursday, October 2, 2014

माटी के लाल- लाल बहादुर शास्त्री

इ बात त सभे जानत बा की २ अक्टूबर १८६९ के महात्मा गाँधी जी के जन्म भइल रहे और उनके याद में इ दिन गाँधी जयंती मनावल जाला | पर एइदीन एगो और महापुरुष और भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी के भी जन्म भइल रहे | भारत के दूसरे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी के जन्म आज के ही दिन यानी की २ अक्टूबर १९०४ के उत्तर प्रदेश के मुग़लसराय में साधारण निम्नवर्गीय परिवार में भइल रहे  |



श्री लाल बहादुर शास्त्री जी


आपके वास्तविक नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव रहे | शास्त्री जी के पिता जी श्री शारदा प्रसाद श्रीवास्तव एगो प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक रहनी और बाद में उहा के भारत सरकार में राजस्व विभाग में क्लर्क पद पर काम कईनी | लाल बहादुर के  माँ के  नाम रामदुलारी रहे । 

लाल बहादुर शास्त्री जी के शिक्षा हरिश्चंद्र उच्च विद्यालय और कशी विद्यापीठ में भइल | अपने स्नातकोत्तर के बाद आपके शास्त्री के उपाधि मिलल और आप आपन जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव हटा के जीवन पर्यंत शास्त्री के प्रयोग कईनी |

आपके राजनितिक जीवन के प्रारंभ भारत सेवा संघ से जुडले पर भइल | भारतीय स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय भूमिका के चलते आपके कई बार जेल भी जाये के पडल | १९२१ में असहयोग  आन्दोलन, १९३० में दांडी मार्च और १९४२ में भारत छोडो आन्दोलन में आपके भूमिका बहुत ही सराहनीय रहल |

भारत के स्वतंत्रता के बाद शास्त्री जी के उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव बनावल गइल | श्री गोविन्द बल्लभ पन्त जी के मंत्री मंडल में आपके पुलिस और यातायात मंत्रालय दिहल गइल | परिवहन मंत्री के रूप में आप महिला संवाहकन ( कन्डकटर ) के नियुक्ति कईनी | पुलिस मंत्री रहत हुए आप भीड़ के नियंत्रित करे खातिर लाठी के जगह पर पानी के बौछार के प्रयोग के शुरूवात कईनी | १९५१ में जब जवाहर लाल जी प्रधानमंत्री रहनी तब आपके अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव बनावल गईल | १९५२,१९५७ और १९६२ के चुनावन में कांग्रेस पार्टी के भरी बहुमत से जीतले के श्रेय आपके अथक परिश्रम और प्रयास के ही नतीजा रहे |

आपके प्रतिभा और निष्ठा देख के ९ जून १९६४ के भारत के दूसरा प्रधानमंत्री के रूप में आपके शपथ दिलवाल गईल | २६ जनवरी १९६५ के देश के जवान और किसान के आपन कर्म और निष्ठा के प्रति मजबूत रहे और देश के खाद्य के क्षेत्र में आत्म निर्भर बनावे के उद्देश्य से आप " जय जवान, जय किसान" के नारा  दिहली | इ नारा अजुवो पूरा भारत में लोकप्रिय बा | उज्बेकिस्तान के राजधानी ताशकंद में पाकिस्तान के ओ समय के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करे वाला समझौता पर हस्ताक्षर कईले के बाद ११ जनवरी १९६६ के रात में रहस्यमय परिस्थिति में आपके मृत्यु हो गईल |

आपके सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी खातिर आपके मरणोपरांत " भारत रत्न " से सम्मानित कईल गईल |