Tuesday, October 14, 2014

समझौता – शारदा नन्द प्रसाद

अदमी के तूर देवे वाला अन्हार भीतर-बाहर सगरो छावल रहे | अइसन उजुग हो गइल कि केतनो किचकिचा के आँख मुनले पर नीन के नाव ना |

अकेल परले पर आदमी के बुझाला कि हर जड़ बस्तु चेतन हो गइल बा | खेत के झूर भूत आ रसता के रसरी साँपे नियर लागेला | आस्ते-आस्ते जब इतमिनान होला त बुझाला कि हमहू जियतानी | जिनगी भर के छितराइल बात के आदमी ठीकरा अइसन बटोर लेला अ कवनो बेवस्था के जिनगी जियला के अहसान ओकरा होखे लागेला |

हाथ में लाल लाल चूरी, नाक में झुंझी देह पर सुगवा रंग के सारी अउर मन में ओह दिन के बात जवन डोली में चढ़े के बेर सुसुकत सुनाइल रहे “गोइयाँ हमार तोहार नन्हे के पिरितिया, पिरितिया जनि छोडीह हो गोइयाँ” रील नियर उभरल जात रहे |

इ बात माटी के तेल नियर गाँव भर में पसर गइल कि उ ससुरा से भाग आइल | ओकरा माई के बूझे में इचिको देर ना लागल | ससुरा वाला जियत माटी पोंछे के तैयार ना रहलेसन |

“ अपना करेज खातिर नु सगरी अघावत करे के परता | एगो समय रहे जे एगो छन बिसारस ना , अब कुकुरो बरोबर नइखन गुदानत | मन त अइसन अंउतीयाइले बा कि कवनो एनर पोखर ध लीं “

सउसे दिन चढ गइल | अभी ले उठे के बेरा ना भइल | कवनो काम ना धन्धा | चार घरी दिन ले पटाइल रहतारे | चौबीसों घंटा आँख पर मलेछ घेरले रहता | सांचो कहल जाला “ ना छुतिहर फुटेला ना भूतहर मुएला ” |

कुछ बुदबुदइले आ खांसते उठके बइठ गइले | पुछलन “ भागेलुआ कहवा बा ? इहो ससुरा ढढू के पड़ा हो गइल, बाकिर एकरा तनिको होश हवास ना भइल | पत्ते ना चले, कहाँ रहेला, का करेला ? जब देख, त जुआ, जब देख त जुआ, जानू ओही से धरम करम चली | दुनो महतारी बेटा एक टेम बात ले नइखन सन करत | ना जाने, कहाँ कागज भुलाइल बा ? माया जवान ना करावे | बाकिर सोचिले कि हमर के बा | मार दि चाहे गरिया के दी, इहे नु पुछबो करी | अभिन लरिकवन उमरियो न बा, केतना दिन के भइबे कइल............”

No comments:

Post a Comment