Thursday, October 23, 2014

पर्व मेला - गोवर्धन पूजा (चौथा दिन)

       भारतीय पर्वन में मानव के प्रकृति के साथ सीधा संबंध दिखाई देला, अउर एह बात के सबसे बधन सबूत ह गोवर्धन पूजा या गोधन | कातिक महीना के शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा के दिन गोधन मनावल जाला | एह दिन बलि पूजा, अन्न कूट, मार्गपाली भी मनावल जाला | अन्नकूट या गोधन में गाय, बैल आदि पशुअन के नहवा के फूल माला, धुप, चन्दन आदी से उनकर पूजा कईल जाला | गोबर से गोवर्धन पर्वत बना के जल, मौली, रोली, चावल, दही, फूल, और तेल के दिया जला के पूजा और परिक्रमा कइल जाला | शास्त्रों में कहल गइल बा की गाय वैसे ही पवित्र होले जैसे की नदीयों में गंगा, साथ ही साथ गाय के देवी लक्ष्मी के स्वरुप भी कहल गइल बा | जवने तरे देवी लक्ष्मी अपने भक्तन के सुख-समृद्धि डेली वैसे ही गाय ओने दूध से इंसान के स्वास्थ्य रुपी धन प्रदान करेली | एही से गाय के प्रति श्रद्धा प्रकट करे के खातिर ही कार्तिक शुक्ल के प्रतिपदा के दिन गोवर्धन या गोधन पूजा कइल जाला | ऐसे जुडल एगो पौराणिक कहानी भी हवे |

        कहानी इ हवे की एक बार देवराज इन्द्र के अभिमान हो गइल | इन्द्र के अभिमान तूरे खातिर भगवान श्री कृष्ण जी एगो लीला रचनी | एक दिन जब पूरा ब्रज मंडल कवनो पूजा के तयारी करत रहे त, इ देख के बल गोपाल जी अपने मैया यशोदा से पुछली की इ का होता ? मैया यशोदा उहा के बतावली की, लल्ला हमहन के देवराज इन्द्र के पूजा खातिर अन्नकूट उत्सव के तैयारी करत बानी के | इ सुन के भगवान कृष्ण जी बोललीं की मैया हमहन के इन्द्र के पूजा कहे करेनी के ? तब मैया यशोदा कहली की इन्द्र वर्षा के देवता हवे और उ वर्षा करेनS जेसे की अन्न के पैदा होला और उनसे हमहन के गैयन के चारा भी मिलेला | तब कृष्ण जी बोलली की तब त हमहन के गोवर्धन पर्वत के पूजा करे के चाही कहे से की हमहन के गई कुल त उहे चरेली सब, एही से त गोवर्धन पूजनीय हवे और इन्द्र त कब्बो दर्शन भी नाही देले और पूजा न कइले से नाराज भी होले | अतः अइसन अहंकारी के पूजा कइले के का फायदा और करे के भी नाही चाही |

       लीलाधरी कृष्ण के माया से और लीला से सब इन्द्र के बदले गोवर्धन पूजा कइले | इ देख के इन्द्र क्रोधित हो के अपने अपमान के बदला लेवे खातिर घनघोर वर्षा शुरू कर दिहले | तब मुरलीधर कृष्ण सबके बचावे के खातिर अपने कानी उंगली पर पूरा के पूरा गोवर्धन पर्वत ही उठा लेहनी और सब व्रजवासियन के अपने अपने गायन के साथे अपने सरन में ले लिहनी | इ देख के इन्द्र और क्रोधित होके और घनघोर बारिश करे लगनS | तब भगवान कृष्ण सुदर्शन चक्र के गोवर्धन के ऊपर लगा के वर्षा के पानी के नियंत्रित कइनी और शेषनाग के मेड बना के पानी के पर्वत के ओर आवे से रोक दिहली |

       लगातार सात दिन के वर्षा के बाद इन्द्र के अहसास भइल की कृष्ण कवनो साधारण आदमी न हवे | तब उ ब्रह्मा जी के पास गइने, ब्रह्मा जी उनके पूरा सच्चाई बतवली की कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार और पूर्व के पुरषोत्तम नारायण हवे | तब इन्द्र के अभिमान टूट गइल तब उ कृष्ण के शरण में जाके माफ़ी मंगले और उनकर पूजा कर के भोग भी लगवले |

       ए पौराणिक घटना के बाद से ही गोवर्धन पूजा शुरू भइल | व्रजवासी एही दिने गोवर्धन के पूजा करेले, और गाय, बैल के नहवाके उनके रंग लगा के सजावल जाला और उनके गटइ में नया रसरी दलाल जाला | गाय और बैल के गुड चावल खिया के उनकर सम्मान और पूजा कइल जाला | त हवे न गोधन प्रकृति से जुडल पर्व |

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