Wednesday, October 22, 2014

पर्व मेला - दीपावली (तीसरा दिन)

त्योहर और उत्सव हमहन के जीवन के सुख और हर्षोल्लास के प्रतीक होला जवन की समय के अनुसार अपने रूप-रंग और आकार में अलग-अलग होला | त्यौहार मनावे के विधि-विधान भी अलग हो सकेला पर एकर अंतिम अभिप्राय कवनो विशेष आस्था के संरक्षण या फिर आनंद के प्राप्ति होला | सब त्योहरन से कवनो न कवनो पौराणिक कहानी जरुर जुडल होला, अउर ए सब कहानी कुल के संबंध तर्क से न होकर अधिकतर आस्था से होला | इहो कहल जा सकेला की पौराणिक कहानी प्रतीकात्मक होलापर उनकर मकसद आम इंसान के इ बतावल होला की हमेशा बुराई पर अच्छाई के विजय होला | और साथ ही साथ में आम इंसान के पाप और अधर्म से बचावल भी होला |


दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें


कातिक महीना के अमावस्या के दिन दिवाली के त्यौहार मनावल जाला | 'दिवाली' के 'दीपावली' भी कहल जाला | मूल रूप से दिवाली अकेला त्यौहार न होके पांच पर्व के एगो श्रृंखला हवे | लगातार पांच दिन, दिवाली से दो दिन पहले से लेके दिवाली के दो दिन बाद तक के पांच दिन | धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दिवाली, गोवर्धन पूजा और यम द्वितीया या भैया दूज | ए सब पर्व से जुडल अलग-अलग कहानी भी बा |

पांच पर्व के श्रृंखला में दिवाली मुख्य दिन हवे, जेके रोशनी के पर्व के रूप में कातिक महीना के अमावस्या के मनावल जाला | दीपावली दो शब्द से मिल कर बनेला 'दीप' और 'अवली', जेमे की 'दीप' के अर्थ हवे 'दिया' और 'अवली ' के मतलब होला 'पंक्ति', मतलब 'दीपावलीके मतलब भइल 'दिया के पंक्ति' | दीपावली के ही बिगडल रूप दिवाली हवे |

अपने देश के हिंदू लोगन के सबसे बडहन त्यौहार हवे दिवाली, जेसे जुडल अनेक पौराणिक कहानी कहल जाला | जेमे की सबसे प्रचलित कहानी के अनुसार देश के उत्तरी भाग में दिवाली के पर्व भगवान श्री रामचंद्र के द्वारा राक्षसराज रावण के वध कइले के बाद वापस अयोध्या लौटले के खुशी में मनावल जाला | महर्षि वाल्मीकि के द्वारा लिखल ग्रन्थ रामायण के अनुसार अयोध्या के राजकुमार राम अपने विमाता कैकेयी के इच्छा और पिता दशरथ के आज्ञानुसार १४ साल के वनवास काट के और लंकानरेश रावण के वध कर के एही दिने अपने पत्नी सीता, छोटहन भाई लक्ष्मन और भक्त हनुमान जी के साथे अयोध्या लौटल रहन, और उनके स्वागत में पूरा नगर के दिया जला के सजावल गइल रहे | ओही समय से दिया जलाके, पटाखा  फोड़ के और मिठाई बाँट के ए शुभ दिन मनावे के परंपरा शुरू भइल |

एगो अन्य मान्यता के अनुसार दिवाली के दिने ही माता लक्ष्मी जी दूध के सागर से, जेके की 'केसर-सागर' अथवा 'क्षीर-सागर' भी कहल जाला से उत्पन्न भइल रहनी | उत्पत्ति के बाद माता लक्ष्मी जी सारा संसार के प्राणीयन के सुख-समृधि के वरदान दिहली, एही से दिवाली पर माता लक्ष्मी जी के पूजा कइल जाला | अउर इहो मान्यता ह की पूरा श्रध्दा से पूजा कइले से माता लक्ष्मी जी अपने भक्तन पर खुश होके उनके धन-सम्पदा और वैभव से भर देनी |


एकरे अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्रन में दिवाली के दिने के फसल के कटाई के पर्व के रूप में भी मनावल जाला | एह समय तक फसल के कटाई के बाद किसान के हाँथ में धन आ चुकल होला, एही से उ, ओ धन के माता लक्ष्मी जी के चरण में अर्पित कर के त्यौहार के खुशी भी मनावल जाला | दिवाली के अवसर पर माता लक्ष्मी जी अपने वाहन उल्लू पर सवार होके निकलेली और रौशनी से डूबल घरन में प्रवेश करेली |

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