Tuesday, October 21, 2014

पर्व मेला - नरक चतुर्दशी ( दूसरा दिन)

धनतेरस के अगला दिन यानी की कातिक के कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी के नरक चतुर्दशी के नाम से जानल जाला | एके नरक चौदस, रूप चौदस, रूप चतुर्दशी, नर्क चतुर्दशी आ नरका पूजा के नाम से भी जानल जाला | एके छोटा दिवाली भी कहल जाला | एही दिन मौत के देवता यमराज जी के भी पूजा कइल जाला | एके छोटी दिवाली कहल जाला, काहे से की दिवाली के ठीक एक दिन पाहिले रात में ओही तरह से दिया के रौशनी से रात के अन्धकार के भगावल जाला जैसे की दिवाली के राती के भगावल जाला | एह दिन के बारे में भी कई तरह के कहानी और पौराणिक लोकमान्यता बा |

नरक चतुर्दशी की हार्दिक शुभकामनायें


भारतीय संस्कृति में हर त्यौहार के काउनो न काउनो कहानी अ लोकमान्यता जुडल हवे | हर कहानी के अंत में कुछ संदेसा भी हवे जेसे की आम जनता के परिचित करावल जाला | हर पौराणिक मान्यता और कहानी के अंत हमेशा बुराइ पर अच्छाई के विजय या आम जनता के कउनो बुरा काम से रोके से होला | अइसही नरक चतुर्दसी के कहानी से आम जनता के इ सन्देश दिहल जाला की अनजाने में भी भी कइल गलती के परिणाम बुरा होला | पर अगर इंसान अच्छा काम करे त उ ओकर परिणाम के बदल सकेला | नरक चतुर्दशी से जुडल कहानी कुछ ए तरह से हवे |

रन्ति देव नाम से एगो रजा रहले बहुत ही पुण्यात्मा, धर्मात्मा और दयालु | हमेशा ही धर्म- कर्म और परोपकार काम में लागल रहे वाला इंसान रहनS | जब उनकर अंतिम समय आइल त यमराज के दूत उनके लेवे खातिर आ गईने | और राजा के लेके नरक में जाए लगने | यमदूत के अएसन करत देख के राजा चौक गईने और उनसे पूछने की हम त कब्बो कौनो अधर्म आ पाप नाही कइनी त फिर आप लोग हमें नरक में कहे ले जात बानी | कृपा कर के हमके हमार अपराध बताई जवने कारन हमके नरक में जाए के पडत बा ? अएसन कौन भरी अपराध हो गइल हमसे की आज हमके नरक में जाए के पडत बा ?

राजा के दुःख भरल बात सुन के यमदूत के दिल पसीज गइल और उ कहने की, हे राजन एक बार तोहरे दरवाजा पर से एगो भूखाइल बाभन लौटल रहे एही से तोहके नरक जाए के पडत बा | बस एगो भूखाइल बाभन न खियइले से नरक ! मतलब की कउनो भूखाइल के खाना खियावल केतना बढहन पुन्य के काम ह | इ बात सुन के राजा यमदूत से विनती कइले की हमके बस एक साल के और समय दे दीं जेसे की हम आपन बुरा काम ठीक कर सकी | यमदूत सोच विचार कर के राजा के आयु एक साल और बढा़ दिहले | यमदूत के जइले के बाद राजा इ समस्या के लेके कई ऋषियन के पास पहुचली और सारा बात बता के इ समस्या के निदान पुछली | ऋषि लोग बहुत सोच विचार कईली और फिर राजा से कहली की, हे राजन आप कृष्ण चतुर्दशी के व्रत करीं | और ब्राह्मणों के खाना खिलाई और उनसे अपने अपराध के क्षमा मांगी अगर उ लोग आपके माफ कर देइब त आ आप ए पाप से मुक्त हो सकेली |

राजा रन्ति, जइसन ऋषि लोग कहले रहनी वइसने ही कएली और कृष्ण चतुर्दशी के व्रत रखनी, देश भर के ब्राह्मण के बुला के खाना खिलइली और उनसे अपने अपराध के माफी भी मांग लेहनी | एह तरे राजा अपने ए पाप से मुक्त होके विष्णु लोक में स्थान पइली | तब्बे से हर तरह के पाप से मुक्ति पाए खातिर कार्तिक चतुर्दशी के व्रत प्रचलित हो गइल |


एगो और कहानी के अनुसार भगवान कृष्ण एही कातिक महीना में चतुर्दशी के दिन नरकासुर के वध कर के देवताओ और ऋषियों के ओकरे आतंक से मुक्ति दिलवनी | एकरे साथ ही साथ श्री कृष्ण सोलह हजार कन्याओ के भी नरकासुर के कारागार से मुक्त करइली | एही के उपलक्ष्य में नगर के निवासी पूरा नगर के दिया से सजा के नरकासुर नाम के अँधेरा के दूर होखले के खुशी मनवले | तब्बे से नरक चतुर्दशी के त्यौहार मनावल जाये लागल |

1 comment:

  1. नरक चतुर्दशी नरकासुर की कहानी

    नरक चतुर्दशी नरकासुर की कहानी: प्राचीन काल में नरकासुर प्रद्योशपुरम राज्य पर शासन किया। पुराणों में यह वर्णन है कि भूदेवी का बेटा नरक ने, गंभीर तपस्या के बाद भगवान ब्रह्मा द्वारा दिए गए एक आशीर्वाद से असीम शक्ति हासिल कर ली है।

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