Wednesday, December 24, 2014

भोजपुरी गीतों में अश्लीलता

आज तक हमहन के समाज न ही पुराना खयालात पूरा तरह से छोड़ पवलेबा ना ही नया रीति-रिवाज के पूरा तरह से अपना पवले बा | अजीब से चितकाबर बानर बन गईल बा | अगर आप इ मानत हईं कि गीत- संगीत और सिनेमा समाज के दर्पण होला त इहो मनले में कउनो हरज नहीं होखे के चाही कि भोजपुरी गीतन में अश्लीलता या नंगापन ग्रामीण समाज में फैलल कुंठित भावना के अभिव्यक्ति मात्र ही ह | एगो नजरिया त इहो बा की ग्रामीण समाज दबा के रखे वाला चीजन के लेके सहज महसूस करेला अउर शायद एही से उनके एह अश्लीलता के लेके कउनो ख़ास शिकायत नइखे जवने तारे सभ्य समाज के बा |

बहुत पहिले मनोज तिवारी के एगो अलबम आईल रहे "पूरब के बेटा" ए अलबम के सगरी गाना अइसन बा की आप अपने पूरा परिवार के साथ बैठ के सुन सकेली | ओकरे कुछ समय बाद ही आईल मनोज तिवारी के ही भोजपुरी फिल्म "ससुरा बड़ा पईसा वाला" | यकीन मानी देवरिया के सूरज टाकिज में इ लगातार तीन महिना चलल | एह फिल्म के देखे खातिर ओह समय पूरा गाँव के गाँव आवे | लेकिन एकरे हिट होखले के बाद अचानक से भोजपुरी गानन के भरमार आवे लागल काहे से की मनोज तिवारी पहिले गाना गावत रहने फिर उनकर फिल्म आ गईल | त जल्दी मशहूर होखे के खातिर भोजपुरी गायक दू मतलब (द्विअर्थी) वाला गाना गावल शुरू कइले | फिर ट्रक, टेम्पो और बस वाला सब एह सब गाना के पूरा आवाज में चलावे लगने | और धीरे-धीरे कब इ सब गाना ट्रक, टेम्पो और बस वाला सब से आम इंसान के पास पहुच गईल इ न कहल जा सकेला | आज कम समय में ढेर मशहूर होखे के बा त एगो अलबम अइसन बना दी बस |

आज के भोजपुरी गीत में कल्पनाशीलता के अइसन-अइसन बाण छोड़ल जाला कि महाभारत के अर्जुन और कर्ण भी शर्म से डूब मरे | आज के भोजपुरी गीतन के चोली और लहंगा से त इतना गहरा रिश्ता बन गईल बा कि पूछी मत | जब तक कि गाना में एह दुन्नो के जिकर ना होई तबले गाना नाही पुरा हो सकेला | "मोरे लहंगा में आवे रे भूकम्प ", "लहंगा में सबसे बड़ा ATM", "हमरे लहंगा में मीटर लगा दी राजाजी", "तोहार लहंगा उठा देब रिमोट से" सब से शुरू भईल इ श्रृंखला कब जा के रुकी कहल न जा सकेला | अगर आपके अब्बो लगत होखे की कल्पनाशीलता के कुछ कमी बा त "हाई पॉवर के चुम्बक बाटे इनका दुप्पटा के पीछे" आ "कसम से देह रसगुल्ले  बा" उ कमी पूरा कर दिहें सब | गावें में एक गाना हर इंसान के मोबाइल में मिल जाई "मिस कॉल मारत तारु किस देबू का हो" | विश्वास करीं गावें के इतना विकास भईल कि आजुवो नंगे भईस चरावत आदमी के पास भी एगो महंगा मोबाइल सेट जरुर मिल जाई जेम्मे की कुछ अइसन ही गीत बाजत होई | ओकरे बादो अगर आप नहीं सुन पावत बानी त चिंता न करीं कवनो छोटहन लईका के पकड़ी, उ जरुर सुना देई उहो लाइव | अगर आप कही हिन्दी आ चाहे कौनो और भाषा बोले वाला लोगन के साथे खड़ा बानी त भोजपुरी के नाम लेहला से ही आपके अइसन नजर से देखल जाई की जैसे केतना बडहन गुनाह कर देहले बानी आप | और एकर सबसे बडहन कारन इहे अश्लील गाना हवें सब | एह परिस्थिति के बदले के जरुरत बा |

लोकगीतन के अपने इहाँ बहुत ही समृद्ध परम्परा रहल बा अवधी, बृजभाषा, भोजपुरी, मगही के गीतन के धूम रहल बा जेम्मे की जीवन के हर मोड़ खातिर गाना बा बिरह से लेके मिलन तक के, बचपन से लेके बुढ़ापा तक के, इहाँ तक कि मौसम के हिसाब से भी, जइसे होली के लोकगीत फगुआ से लेके चैता और कजरी तक | अउर एह सब गीतन के पद्मश्री शारदा सिन्हा, भारत शर्मा, मनोज तिवारी और बालेश्वर यादव जइसन गायक नया आयाम दिहलें | अइसे में अश्लीलता के भोजपुरी गीतन पर छा जावल बहुत खलेला | आज के समय में कवनो दुकान पर शायद ही कजरी, चैता या फिर फगुआ के कैसेट या सीडी मिले पर द्विअर्थी गाना के जरुर मिल जाई | पद्मश्री शारदा सिन्हा जी अपने एगो इंटरव्यू में कहले रहनी कि "पैसा के लालच में हम कैसे आपन थाती गवां देई" | बस एक लाइन में उहाँ के द्विअर्थी गाना बनले के सबसे बडहन कारन बता देहलीं |

एगो समय रहे जब भोजपुरी गीत, सुने वाला से इतना गहरा रिश्ता बना लें कि सुने वाला ओम्मे डूब जा कारन बस इ रहे कि ओह समय के गाना सब आपन माती और संस्कृति के असली झलक देखावें | "नदिया के पार" के गाना "कवने दिशा में लेके चला रे बटोहिया" होखे चाहे "बालम परदेशिया" के "गोरकी पतरकी रे" होखे में न त आज के तारे थोपल गईल गंभीरता रहे न ही कवनो तरह के अश्लीलता रहे लेकिन फिर भी आज तक सुने वाला लोगन के ना बस याद ह बाकिर गुनगुनावे पे भी मजबूर करेला |

Saturday, December 20, 2014

अइसन भी होला - एगो अनोखा मान्यता

अपने देश भारत में आज भी कुछ अइसन परम्परा जीवित बाटे जवन की आज के सभ्य कहल जाया वाला समाज के आश्चर्यचकित करेला | अइसन ही एगो परम्परा के बारे में हम आज आप के बतावे जात बानी | ए परम्परा के शुरुवात कईसे भइल इ त आज केहू के ना मालूम बा लेकिन एसे जुडल समुदाय के लोगन के कहल बा की उ एकरे बारे में अपने पूर्वजन से सुनत आवत हवें | हिन्दू धर्म में कउनो सुहागिन आपन सुहाग के निशानी ना छोड सकेले और अगर अइसन होत बा त ओके बहुत ही बडहन अपशगुन मानल जाला | लेकिन ए परम्परा में पति के सलामती के खातिर पत्नी विधवा के जीवन जीयेली | इ परम्परा गछवाहा समुदाय से जुडल बा और इ समुदाय मुख्यतः ताड़ी के पेशा से जुडल ह | इ समुदाय पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, देवरिया और एसे सटल बिहार के कुछ इलाका में रहेला |


तरकुलहा देवी (आकाशकामिनी माता )

ताड के पेड़ ५०-६० फिट से भी ऊँचा और एकदम चिकना होला और इ समुदाय के लोग इतना ऊंचाई से ताड़ी निकलले के काम करेने | ताड के पेड़ पर चढ़ के ताड़ी निकलले के काम बहुत ही खतरनाक होला | ताड़ी निकलले के काम चइत ( चैत ) महिना से लेके सावन महिना तक होखेला (कुल चार महीना ) | गछवाहा औरत जिनके की तरकुलारिष्ट भी कहल जाला ए चार महिना में ना त आपन मांग में सिंदूर भरेली और ना ही कउनो अउर श्रृंगार करेली | उ अपने सुहाग के निशानी तरकुलहा देवी  (गछवाहा समुदाय इहाँ के आकाशकामिनी माता के नाम से भी जानेला ) के पास रेहन रख के अपने पति के सलामती खातिर प्रार्थना करेली |

तरकुलहा देवी मंदिर

तरकुलहा देवी गछवाहा समुदाय के इष्ट देवी हइ | तरकुलहा देवी के मंदिर गोरखपुर से २० किलोमीटर के दुरी पर गोरखपुर-देवरिया मार्ग पर बा | पूर्वी उत्तर प्रदेश में इ हिन्दुअन के एगो प्रमुख धार्मिक स्थल हवे | गछवाहा औरत चइत के राम नवमी से लेके सावन के नाग पंचमी तक अइसे ही रहेली | ताड़ी के काम ख़तम होखले के बाद सब गछवाहा नाग पंचमी के दिने तरकुलहा देवी के मंदिर में जुट के पूजा करेने | पूजा के बाद गछवाहा महिलाये आपन-आपन मांग सिंदूर से भरेली और बाकी के भी श्रृंगार करेली |

Wednesday, December 17, 2014

का पाकिस्तान अब्बो सबक लेइ ?

गली में एगो पागल कुत्ता होखे अउर आप ओके रोज रोटी खिलावत बानी तब्बो आप ए बात के गारंटी ना दे सकेली कि उ आपके कब्बो ना काटी | काहे से कि पागल कुत्ता के भरोसा ना कइल जा सकेला | अइसही आतंकवाद एगो पागल कुत्ता ह और पाकिस्तान ओके रोज ही हथियार, धन और शरण के रोटी खिलावेला | लेकिन कल के भइल हमला ए बात के सबूत बा की आतंकवाद केहू के ना हो सकेला |


फोटो कर्टसी : आज तक


पाकिस्तान के पेशावर के एगो आर्मी पब्लिक स्कूल पे भइल बर्बर हमला हम सबके सामूहिक और सामाजिक चेतना के हिला के रख देहले बा | इ आतंकवाद के सबसे खतरनाक चेहरा हवे जेम्मे की मासूम बच्चन के भी नाहीं छोड़ल गइल | तालिबान के हथियारबंद आतंकवादी एगो स्कूल में घुस के कई घंटा तक वहशियाना ढंग से स्कूल के बच्चन और कर्मचारियन के निशाना बनावत रहले जेम्मे की 120 से अधिक लईकन के मौत हो गईल | तालिबान इ हमला के जिम्मेदारी लेत  एके पाकिस्तानी फ़ौज के ओकरे खिलाफ कइल जात खैबर पख्तूनख्वा क्षेत्र में कारवाही ही बदला बतावत ह | लेकिन सबके मालूम बा की इ बसएगो आड़ ह | पाकिस्तानी फ़ौज त इ कारवाही एही साल जून में शुरू कईले रहे, लेकिन 2007 में अपने गठन से लेके आज तक पाकिस्तान तालिबान आज ले अल क़ायदा और अफगानिस्तानी तालिबान के रास्ता पर चलत बा और पाकिस्तान के कई शहर में आतंकी हमला कइले बा | इहे तालिबान दू साल पाहिले मलाला युसुफजई के भी बस एह लिए निशाना बनवलस  कि उ बच्चन के अधिकार और पढाई के बात करत रहली | हालत इ बा की बच्चन के अधिकार खातिर लडे वाला कैलाश सत्यार्थी के साथे नोबेल के शांति के पुरस्कार पइले के बादो मलाल आजुओ अपने देश ना लौट सकेली | आतंकवादियन खातिर बच्चन और औरतन के बीच में कउनो अतर ना ह | चाहे उ आईसआईस, बोको हरम, अल क़ायदा आ चाहे इ तालिबान | इ घटना पाकिस्तान के पूरा तंत्र के नाकामी के देखावत बा, जवन की तालिबान के फलले-फुलले के मौका दिहलस |

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ इ हमला के राष्ट्रीय आपदा कहत हवे, लेकिन एकरे साथे ही हमहन के इ पडोसी देश के आतंकवाद के मुद्दा पर आत्ममंथन भी करे के चाही | उ खुदे आतंकवाद से जुझत हवे लेकिन भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधि अंजाम देवे वाला सब के संरक्षण भी देत रहल बा | सही मायने में देखल जा त पेशावर में भइल हमला और दू दिन पहिले सिडनी में एगो सिरफिरा के कैफे में घुस के कुछ लोगन के बंधक बनावे वाला घटना इ बतावे खातिर काफी बा की कइसे आतंकवाद एगो वैश्विक खतरा बन गइल बा, कि कइसे एगो आतंकवादी भी करोडो लोगन के जान सांसत में डाल सकेला | पेशावर के घटना से ओ सब देशन के सबक लेवे के चाही जवान कि जाने अनजाने में आतंकवाद और आतंकवादियन के पनाह देवत हवें |

कुछ तथ्य :
संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा साल 2012 में जारी कइल गईल रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 17 देश में कुल 3643 हमला भइल बा उहो बस शिक्षण संस्थान पर |
  • 3643 हमला 2012 में कुल 17 देश के शिक्षण संस्थानं पर |
  • 75 बच्चे और 212 शिक्षक प्रभावित भइने एह सब हमला में |
  • एह सब में 90 हमला सैन्य इस्तेमाल के 11 देशन पर |
  • 1241 स्कूल गिरा दिहल गईल 2008 से अब तक पाकिस्तान में |
  • 763 स्कूलन के नुकसान पहुचावल गईल |
  • 244 लडकियन के स्कूल क्षतिग्रस्त | 

कउनो भी आतंकी गुट इ न चाहेला की बच्चा सब तालीम हासिल करे सब और उनके नापाक इरादन के समझे एही से उ स्कूलन पर हमला करेन सब  |

Monday, December 8, 2014

दउरत-दउरत जिनिगी भार हो गइल - विजेन्द्र अनिल

दउरत-दउरत जिनिगी भार हो गइल,
भोरहीं में देखिलऽ अन्हार हो गइल।

केकरा के मीत कहीं, केकरा के दुश्मन,
बदरी में सभे अनचिन्हार हो गइल।

पुरवा के झोंका में गदराइल महुआ,
अचके में पछुआ बयार हो गइल।

दरिया में कागज के नाव चलि रहल,
गड़ही के पानी मँझधार हो गइल।

रेत के महल इहास बन्हले बा,
तुमड़ी के भाग, ऊ सितार हो गइल।

कतना उठान भइल दुनिया के,
प्रेम आउर कविता जेवनार हो गइल।

Saturday, November 22, 2014

भोजपुरी और पंजाबी

भोजपुरी अथवा ‘भोजपुरिया’ भाषा के नामकरण बिहार राज्य के बक्सर जिला में (पहिले आरा (शाहाबाद) जिला में स्थित) भोजपुर नामक गाँव की नाम पर भइल हवे। भोजपुर नाम के एगो बड़ा परगना बा जेवना में "नवका भोजपुर" अउरी "पुरनका भोजपुर" नाँव के दू गो गाँव बाड़ें । मध्य काल में एह स्थान के राजपूताने के मूल निवासी भोजवंशी परमार राजा जवन लोग उज्जैन हो के आइल रहे, बसावल आ एकर नाँव अपनी पूर्वज राजा भोज के नाम पर ‘भोजपुर’ रखने । एही भोजपुर राज्य के भाषा के नाँव भोजपुरिया अथवा भोजपुरी भइल । 

आज भोजपुरी के सीमा ए.बी.सी.डी. (यानी आरा, बलिया, छपरा, देवरिया) के प्रचलित परिभाषा से बहुत आगे सरक गइल बा |

आस - पास के भाषा कुल अगर मिळत होंखे त कौनो हैरान होखले के बात न ह , लेकिन अगर दूर के दू गो भाषा जवन दुन्नो के दूर दूर तक के आपस में  कउनो संबंध नाही बा अगर उ दुन्नो मिलत होंखे सब त बहुत ही आश्चर्य के बात होई | हलाकि भोजपुरी जैसे की मगही के से मिले ले वैसे त नाही पर कुछ हद तक पंजाबी के भोजपुरी से  या फिर कहल जा की भोजपुरी के पंजाबी से मिलले के लक्षण दिखाई देला | कुछ अइसन शब्द जवन की बिहार के भोजपुरी और पंजाब के पंजाबी से मिले ला ओके देखीं |

ਪੰਜਾਬੀ (पंजाबी)*
भोजपुरी*
हिन्दी*
ਨੇੜੇ (नेड़े)
नियरे
पास
ਲੂਣ (लूण)
नून
नमक
ਧੀ (धी)
धीया
बेटी
ਘਿਓ (घिओ)
घीव
घी
ਬੱਤੀ ਬਾਲਨਾ (बत्ती बालना) 
बत्ती बारल
बत्ती जलाना
ਠੀਪਾ (ठीपा) 
ठेपी
ढक्कन
ਤਾਕੀ (ताकी) 
ताखा
आला(सामान रखे के जगह)
ਚੌਕਾ (चौका)
चौका
रसोई
ਗੁੱਡੀ (गुड्डी)     
गुड्डी
 पतंग
ਮੋਰੀ  (मोरी)
 मोरी
नाली

* दिहल गईल शब्द पारंपरिक शब्द हवे न की आम बोली में बोले वाला शब्द

Sunday, November 16, 2014

किस ऑफ लव


कवनो हिन्दी फिल्म के गाना रहे 'किस किस को दूं' पहिले त नाइ बुझाइल पर जब इ पढनी की 'कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय, वा खाए बौराय जग वा पाए बौराय' में जइसे कनकके मतलब सोना और धतुरा से रहे ओही तरे गाना में एगो किस के मतलब 'चुम्मा' और एगो किस के मतलब 'अजनबी' बा |

दुनियानभर में भारत अपने भाषा, धर्म और खासकर अपने अनोखा सांस्कृतिक सभ्यता और अतुलनीय परम्परा के विभिन्न रंग और विविधता खातिर मशहूर ह | भारतीय संस्कृति सही मायने में पुरे विश्व खातिर एगो धरोहर ही ह | आज ओही भारतीय संस्कृति के बेडा गर्क कर के बदनाम करे के काम 'चुम्मा-चाटी संघ'  उठवले बा | कोच्ची से कोलकाता और दिल्ली हो के अब संघ के मतवाला टोली आपन गन्दगी फैलावे के खातिर भोपाल तक पहुच गइल |

सरकार के तरफ से कहल गइल ह की इ मुहीम प्रधानमंत्री मोदी जी के द्वारा शुरू कइल गइल स्वच्छ-भारत आन्दोलनके कमजोर करे के साजिश ह, अइसन असामजिक तत्वन पर गंभीरता से न्यायोचित कार्यवाही करत बड़ी सख्ती से निपटल जाई | ओहिजा दूसरी तरफ 'चुम्मा-चाटी संघ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष इमरान हाफमी जी कहत हईं की हम 'किस ऑफ लव' के मुहीम से दुनिया के इ बता दिहल चाहत बानी की हम कवने कोटी के नीच और अश्लीलप्राणी हईं | एक कदम आगे जाके उ कहनी की 'दाग लगले से कुछ अच्छा होला त दाग अच्छा होला'| उनकर मानल इ बाकी उनके खातिर इ 'आत्म-अपमान' के लड़ाई हवे |

संघ के महिला सेल के अध्यक्षा सनी डायनो हमहन बतवली ह की हमहन के अश्लीलता फैलावे से केहू नाही रोक सकेला | अउर अगर अइसन कइल गईल त हम आपन गन्दगी पूरा देश में और जोर-सोर एवं उग्र तरीका से फैलइब | दूसर वरिष्ठ महिला सदस्य मल्लिका हेमरावत के कहल बा की 'चुम्मा-चाटी संघ' के सब काम देश और समाज के दुर्गति खातिर बा | हम लोग आपन अश्लीलता के काम बहुत ही बेशर्मी से चालू रखब के | और हमहन के एह बात के पूरा विश्वाश दिलवाल चाहत बानी के की देश के युवा वर्ग हमहन से बेशर्मीऔर लज्जाऔर हयाके सारा गुन सीखी |

एक बुजुर्ग कहत बाने की देश के बुजुर्गन के ठगल गइल बा | और एगो बाबा जी त कहत हवे की 'राम-राम-राम' हमहन के जमाना में इ मुहीम कहे नाही चलल? 'ना त बाबु हमहू सबसे आगे रहतीं' |

अब देखे वाला बात इ होई की आये वाला समय में चुम्मा-चाटी संघऔर सरकार बीच के खींच-तान कहवा ले जाई ? पर जवन भी होखे संघ के ए कदम से प्रधानमंत्री के स्वच्छ-भारत आन्दोलन' पर खतरा और 'गन्दगी' के बदल मंडरावे लागल बाटे |

व्यंग के अलावा अगर बात कइल जा त स्त्री-पुरुष के भगवान खुद बनवले बाने अउर स्त्री-पुरुष दूनो मिल के संसार रचने पर ए सर्जन के काम खुल्ला कइले के का जरुरत बा ? का घर के चहारदीवारी नइखे ? कि घरवे नइखे ? अगर बेशर्मी के मतलब आजादी होला त कपडा पहिनले के का जरुरत बा ? गोरु सब तरे प्राकृतिक रूप में रहल करे इंसान | खूब 'किस' करीं और 'किस' किस के साथ करी एहु के हिसाब रखीं लेकिन पेड़ के ठुनुगी पे बइठ के अगर ओछा हरकत करब त केहू न केहू त टोकबे करी |

छोटहन कपडा में घुम्मे वाला अउर स्मार्ट-फोन चलावे वाला आज कल के स्मार्टपीढ़ी खुद के ना त अपने जन्मदाता सब के इज्जत के भी त कुछ खयाल रख ले |

Sunday, November 9, 2014

कैथी - वक्त के साथ भुलाइल लिपि

एक वो भी वक्त था जब मेरे बिना काम न चलता था |
    एक ये भी वक्त है जब मेरा नाम भी गुमनाम चलता है ||


       कैथी लिपि अगर शायर होइत, त शायद इहे बात कहित | अइसन कहे के ओकर वजह भी बा, १६ वीं सदी में इजाद कइल गईल और १८८० के दशक में संयुक्त बिहार में आधिकारिक भाषा के दर्जा पावे वाली कैथी आज लुप्त होखे के कगार पर बा | वाह रे हमनी के, हमनी के आपन लिपि के भुला देनी जा | आ दोसर प्रांत आ देस के लोग एकरा के अपना के धन्य हो गइले | का रउआ मालूम बा कि राउर भोजपुरी भाषा के आपन लिपि कैथी आज गुजरात के आधिकारिक लिपि के रूप में सम्मानित आ प्रचलित बिया? इहे ना, राउर ई लिपि बांग्लादेश के सिलहटी या सिलोटी कहल जाये वाला भाषो के मूल लिपि बनल बिया | कैथी भोजपुरी भासा के एगो वैज्ञानिक आ ऐतिहासिक लिपि ह | एह बात के दस्तावेजी प्रमाण मौजूद बा कि एह लिपि के प्रयोग मध्यकाल से भारत के एगो बहुत बड़ इलाका में होत रहल बा | असल में ओह घड़ी लिखे पढ़े वाला लोग जादेतर कायस्थ समाज के होत रहे | कैथी लिपि के नाम ओही से पहिले "कायस्थी", आ फेर "कयथी" आ अंत में कैथी पड़ि गइल | खासियत ई बा कि इ जल्दी लिखा जाले | काहें कि एकरा में कवनो टेक या शीर्ष रेखा ना होला | एकरा में एक्के सकार होला | भोजपुरी के लोगन के देखब कि ऊ लोग श आ ष दूनों के स कहेला | एह लिपि में ऋ, लृ, लू, स्वर आ ङ् ञ ण व्यंजन ना होखे | सांच कहल जाव त भोजपुरी के कैथी लिपि के गुजराती लोग अपना के माथा से लगा लिहले, आ भोजपुरिया लोग नागरी आंदोलन के प्रभाव दबाव में आके एकरा के भुला दिहले |

कैथी के व्यंजन और अंक


कैथी के स्वर


       अंगरेजी सरकार के शासन में कैथी बिहार के सरकारी लिपि रहे | १८७१ ई0 में सर जॉर्ज कैम्पबेल भागलपुर के डिस्ट्रिक्ट गजेटियर में कोर्ट में परसियन के साथ-साथ कैथियो लिपि के मान्यता देवे के आदेश देले रहन, ई बात पी सी राय चौधरी लिखले बाड़े |  इहे ना एह लिपि  मेंसंताल हुल (१८५५) के समय भागलपुर एवं पूर्णिया में घोषणो-पत्र जारी कइल गइल रहे | जून १९३७ के अनुसार पटना, भागलपुर, संताल परगना एवं छोटानागपुर में कैथी लिपि के मान्यता देहल गइल रहे | आरा के मशहूर स्वतंत्रता सेनानी बाबू वीर कुंवर सिंह हमेशा आपन दस्तखत कैथी में करत रहन | ऊ एह लिपि के ठीक से जानत आ एकर उपयोगो करत रहन | एकर एगो प्रमाण बाबू वीर कुंवर सिंह द्वारा शाहाबाद के तत्कालीन कलक्टर के २२ मई १८५७ के लिखल चिट्ठी बाटे | एकरा में दस्तखत कैथी लिपि में बा | एकर चर्चा रीताम्बरी देवी के किताब ‘इंडियन म्युटिनी- १८५७ इन बिहार‘ में बाटे |

       अब्बे भी बिहार के साथ साथ देश के उत्तर पूर्वी राज्यं में ए लिपि में लिखल हजारों अभिलेख बानें सब | समस्या तब होला जब ए अभिलेखन से जुडल कवनो अड़चन आवेला | दैनिक जागरण के पटना संस्करण में ९ दिसम्बर २००९ के पृष्ठ संख्या २० पर बक्सर से छपल कंचन किशोर के एक खबर के अनुसार, ए लिपि के जानकार अब ओ जिला में बस दो लोग बचल बा | और दुन्नो जानी बहुत ही उम्रदराज़ बाने | अइसन में निकट भविष्य में ए लिपि के जाने वाला शायद ही केहू बचे और तब एह लिपि में लिखल  भू-अभिलेखन के अनुवाद आज के प्रचलित भाषा में कइल केतना मुश्किल होई एकर सहज ही अंदाजा लगावल जा सकेला | भाषा के जानकारन के अनुसार इहे हाल हर जगह बा | कैथी के विडंबना इ बा की हमके इ लेख भी देवनागरी में लिखे के पडत बा |ऐसे में एह लिपि के संरक्षण के जरुरत बाटे |

Thursday, November 6, 2014

गाँव क बरखा - चंद्रशेखर मिश्र

बरखा

हमरे गाँव क बरखा लागै बड़ी सुहावन रे।।
सावन-भादौ दूनौ भैया राम-लखन की नाईं,
पतवन पर जेठरु फुलवन पर लहुरु कै परछाईं।
बनै बयार कदाँर कान्ह पर बाहर के खड़खड़िया,
बिजुरी सीता दुलही, बदरी गावै गावन रे।।

बड़ी लजाधुर बिरई अंगुरी छुवले सकुचि उठेली,
ओहू लकोअॅरी कोहड़ा क बतिया, देखतै मुरझेली।
बहल बयरिया उड़ै चुनरिया फलकै लागै गगरिया,
नियरे रहै पनिघरा, लगै रोज नहावन रे।।

मकई जब रेसमी केस में मोती लर लटकावै,
तब सुगना रसिया धीर से घुँघट आय हटावै।
फूट जरतुहा बड़ा तिरेसिहा लखैत बिहरै छतिया,
प्रेमी बड़ी मोरिनियाँ लागै मोर नचावन रे।।

Tuesday, October 28, 2014

किरिनियाँ कहाँ चलि जाले? - अनिरुद्ध तिवारी 'संयोग'

सारी सोनहुली सबेर झमका के,
सँवकेरे रूप के अँजोर छिटिका के,
जाये का बेर ढेर का अगुताले-
किरिनियाँ कले-कले कहाँ चलि जाले?

चलत-चलत बीच रहिया में हारल,
दुपहरिया तेज तिजहरिया के मारल,
धनि बँसवरिया का पाछे लुकाले!
किरिनियाँ कले-कले कहाँ चलि जाले?

दिनभर का जिनगी के कहते कहनियाँ,
जात कहीं फुनुगी पर छोड़त निशनियाँ,
काहे दो सकुचाले काहे लजाले!
किरिनियाँ कले-कले कहाँ चलि जाले?

चिरई-चुरुंगवा जे लेला बसेरा,
डाले चराऊर खोंता में डेरा,
सँझलवके नदिया किनारे नहाले!
किरिनियाँ कले-कले कहाँ चलि जाले?

Thursday, October 23, 2014

पर्व मेला - गोवर्धन पूजा (चौथा दिन)

       भारतीय पर्वन में मानव के प्रकृति के साथ सीधा संबंध दिखाई देला, अउर एह बात के सबसे बधन सबूत ह गोवर्धन पूजा या गोधन | कातिक महीना के शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा के दिन गोधन मनावल जाला | एह दिन बलि पूजा, अन्न कूट, मार्गपाली भी मनावल जाला | अन्नकूट या गोधन में गाय, बैल आदि पशुअन के नहवा के फूल माला, धुप, चन्दन आदी से उनकर पूजा कईल जाला | गोबर से गोवर्धन पर्वत बना के जल, मौली, रोली, चावल, दही, फूल, और तेल के दिया जला के पूजा और परिक्रमा कइल जाला | शास्त्रों में कहल गइल बा की गाय वैसे ही पवित्र होले जैसे की नदीयों में गंगा, साथ ही साथ गाय के देवी लक्ष्मी के स्वरुप भी कहल गइल बा | जवने तरे देवी लक्ष्मी अपने भक्तन के सुख-समृद्धि डेली वैसे ही गाय ओने दूध से इंसान के स्वास्थ्य रुपी धन प्रदान करेली | एही से गाय के प्रति श्रद्धा प्रकट करे के खातिर ही कार्तिक शुक्ल के प्रतिपदा के दिन गोवर्धन या गोधन पूजा कइल जाला | ऐसे जुडल एगो पौराणिक कहानी भी हवे |

        कहानी इ हवे की एक बार देवराज इन्द्र के अभिमान हो गइल | इन्द्र के अभिमान तूरे खातिर भगवान श्री कृष्ण जी एगो लीला रचनी | एक दिन जब पूरा ब्रज मंडल कवनो पूजा के तयारी करत रहे त, इ देख के बल गोपाल जी अपने मैया यशोदा से पुछली की इ का होता ? मैया यशोदा उहा के बतावली की, लल्ला हमहन के देवराज इन्द्र के पूजा खातिर अन्नकूट उत्सव के तैयारी करत बानी के | इ सुन के भगवान कृष्ण जी बोललीं की मैया हमहन के इन्द्र के पूजा कहे करेनी के ? तब मैया यशोदा कहली की इन्द्र वर्षा के देवता हवे और उ वर्षा करेनS जेसे की अन्न के पैदा होला और उनसे हमहन के गैयन के चारा भी मिलेला | तब कृष्ण जी बोलली की तब त हमहन के गोवर्धन पर्वत के पूजा करे के चाही कहे से की हमहन के गई कुल त उहे चरेली सब, एही से त गोवर्धन पूजनीय हवे और इन्द्र त कब्बो दर्शन भी नाही देले और पूजा न कइले से नाराज भी होले | अतः अइसन अहंकारी के पूजा कइले के का फायदा और करे के भी नाही चाही |

       लीलाधरी कृष्ण के माया से और लीला से सब इन्द्र के बदले गोवर्धन पूजा कइले | इ देख के इन्द्र क्रोधित हो के अपने अपमान के बदला लेवे खातिर घनघोर वर्षा शुरू कर दिहले | तब मुरलीधर कृष्ण सबके बचावे के खातिर अपने कानी उंगली पर पूरा के पूरा गोवर्धन पर्वत ही उठा लेहनी और सब व्रजवासियन के अपने अपने गायन के साथे अपने सरन में ले लिहनी | इ देख के इन्द्र और क्रोधित होके और घनघोर बारिश करे लगनS | तब भगवान कृष्ण सुदर्शन चक्र के गोवर्धन के ऊपर लगा के वर्षा के पानी के नियंत्रित कइनी और शेषनाग के मेड बना के पानी के पर्वत के ओर आवे से रोक दिहली |

       लगातार सात दिन के वर्षा के बाद इन्द्र के अहसास भइल की कृष्ण कवनो साधारण आदमी न हवे | तब उ ब्रह्मा जी के पास गइने, ब्रह्मा जी उनके पूरा सच्चाई बतवली की कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार और पूर्व के पुरषोत्तम नारायण हवे | तब इन्द्र के अभिमान टूट गइल तब उ कृष्ण के शरण में जाके माफ़ी मंगले और उनकर पूजा कर के भोग भी लगवले |

       ए पौराणिक घटना के बाद से ही गोवर्धन पूजा शुरू भइल | व्रजवासी एही दिने गोवर्धन के पूजा करेले, और गाय, बैल के नहवाके उनके रंग लगा के सजावल जाला और उनके गटइ में नया रसरी दलाल जाला | गाय और बैल के गुड चावल खिया के उनकर सम्मान और पूजा कइल जाला | त हवे न गोधन प्रकृति से जुडल पर्व |

Wednesday, October 22, 2014

पर्व मेला - दीपावली (तीसरा दिन)

त्योहर और उत्सव हमहन के जीवन के सुख और हर्षोल्लास के प्रतीक होला जवन की समय के अनुसार अपने रूप-रंग और आकार में अलग-अलग होला | त्यौहार मनावे के विधि-विधान भी अलग हो सकेला पर एकर अंतिम अभिप्राय कवनो विशेष आस्था के संरक्षण या फिर आनंद के प्राप्ति होला | सब त्योहरन से कवनो न कवनो पौराणिक कहानी जरुर जुडल होला, अउर ए सब कहानी कुल के संबंध तर्क से न होकर अधिकतर आस्था से होला | इहो कहल जा सकेला की पौराणिक कहानी प्रतीकात्मक होलापर उनकर मकसद आम इंसान के इ बतावल होला की हमेशा बुराई पर अच्छाई के विजय होला | और साथ ही साथ में आम इंसान के पाप और अधर्म से बचावल भी होला |


दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें


कातिक महीना के अमावस्या के दिन दिवाली के त्यौहार मनावल जाला | 'दिवाली' के 'दीपावली' भी कहल जाला | मूल रूप से दिवाली अकेला त्यौहार न होके पांच पर्व के एगो श्रृंखला हवे | लगातार पांच दिन, दिवाली से दो दिन पहले से लेके दिवाली के दो दिन बाद तक के पांच दिन | धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दिवाली, गोवर्धन पूजा और यम द्वितीया या भैया दूज | ए सब पर्व से जुडल अलग-अलग कहानी भी बा |

पांच पर्व के श्रृंखला में दिवाली मुख्य दिन हवे, जेके रोशनी के पर्व के रूप में कातिक महीना के अमावस्या के मनावल जाला | दीपावली दो शब्द से मिल कर बनेला 'दीप' और 'अवली', जेमे की 'दीप' के अर्थ हवे 'दिया' और 'अवली ' के मतलब होला 'पंक्ति', मतलब 'दीपावलीके मतलब भइल 'दिया के पंक्ति' | दीपावली के ही बिगडल रूप दिवाली हवे |

अपने देश के हिंदू लोगन के सबसे बडहन त्यौहार हवे दिवाली, जेसे जुडल अनेक पौराणिक कहानी कहल जाला | जेमे की सबसे प्रचलित कहानी के अनुसार देश के उत्तरी भाग में दिवाली के पर्व भगवान श्री रामचंद्र के द्वारा राक्षसराज रावण के वध कइले के बाद वापस अयोध्या लौटले के खुशी में मनावल जाला | महर्षि वाल्मीकि के द्वारा लिखल ग्रन्थ रामायण के अनुसार अयोध्या के राजकुमार राम अपने विमाता कैकेयी के इच्छा और पिता दशरथ के आज्ञानुसार १४ साल के वनवास काट के और लंकानरेश रावण के वध कर के एही दिने अपने पत्नी सीता, छोटहन भाई लक्ष्मन और भक्त हनुमान जी के साथे अयोध्या लौटल रहन, और उनके स्वागत में पूरा नगर के दिया जला के सजावल गइल रहे | ओही समय से दिया जलाके, पटाखा  फोड़ के और मिठाई बाँट के ए शुभ दिन मनावे के परंपरा शुरू भइल |

एगो अन्य मान्यता के अनुसार दिवाली के दिने ही माता लक्ष्मी जी दूध के सागर से, जेके की 'केसर-सागर' अथवा 'क्षीर-सागर' भी कहल जाला से उत्पन्न भइल रहनी | उत्पत्ति के बाद माता लक्ष्मी जी सारा संसार के प्राणीयन के सुख-समृधि के वरदान दिहली, एही से दिवाली पर माता लक्ष्मी जी के पूजा कइल जाला | अउर इहो मान्यता ह की पूरा श्रध्दा से पूजा कइले से माता लक्ष्मी जी अपने भक्तन पर खुश होके उनके धन-सम्पदा और वैभव से भर देनी |


एकरे अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्रन में दिवाली के दिने के फसल के कटाई के पर्व के रूप में भी मनावल जाला | एह समय तक फसल के कटाई के बाद किसान के हाँथ में धन आ चुकल होला, एही से उ, ओ धन के माता लक्ष्मी जी के चरण में अर्पित कर के त्यौहार के खुशी भी मनावल जाला | दिवाली के अवसर पर माता लक्ष्मी जी अपने वाहन उल्लू पर सवार होके निकलेली और रौशनी से डूबल घरन में प्रवेश करेली |

Tuesday, October 21, 2014

पर्व मेला - नरक चतुर्दशी ( दूसरा दिन)

धनतेरस के अगला दिन यानी की कातिक के कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी के नरक चतुर्दशी के नाम से जानल जाला | एके नरक चौदस, रूप चौदस, रूप चतुर्दशी, नर्क चतुर्दशी आ नरका पूजा के नाम से भी जानल जाला | एके छोटा दिवाली भी कहल जाला | एही दिन मौत के देवता यमराज जी के भी पूजा कइल जाला | एके छोटी दिवाली कहल जाला, काहे से की दिवाली के ठीक एक दिन पाहिले रात में ओही तरह से दिया के रौशनी से रात के अन्धकार के भगावल जाला जैसे की दिवाली के राती के भगावल जाला | एह दिन के बारे में भी कई तरह के कहानी और पौराणिक लोकमान्यता बा |

नरक चतुर्दशी की हार्दिक शुभकामनायें


भारतीय संस्कृति में हर त्यौहार के काउनो न काउनो कहानी अ लोकमान्यता जुडल हवे | हर कहानी के अंत में कुछ संदेसा भी हवे जेसे की आम जनता के परिचित करावल जाला | हर पौराणिक मान्यता और कहानी के अंत हमेशा बुराइ पर अच्छाई के विजय या आम जनता के कउनो बुरा काम से रोके से होला | अइसही नरक चतुर्दसी के कहानी से आम जनता के इ सन्देश दिहल जाला की अनजाने में भी भी कइल गलती के परिणाम बुरा होला | पर अगर इंसान अच्छा काम करे त उ ओकर परिणाम के बदल सकेला | नरक चतुर्दशी से जुडल कहानी कुछ ए तरह से हवे |

रन्ति देव नाम से एगो रजा रहले बहुत ही पुण्यात्मा, धर्मात्मा और दयालु | हमेशा ही धर्म- कर्म और परोपकार काम में लागल रहे वाला इंसान रहनS | जब उनकर अंतिम समय आइल त यमराज के दूत उनके लेवे खातिर आ गईने | और राजा के लेके नरक में जाए लगने | यमदूत के अएसन करत देख के राजा चौक गईने और उनसे पूछने की हम त कब्बो कौनो अधर्म आ पाप नाही कइनी त फिर आप लोग हमें नरक में कहे ले जात बानी | कृपा कर के हमके हमार अपराध बताई जवने कारन हमके नरक में जाए के पडत बा ? अएसन कौन भरी अपराध हो गइल हमसे की आज हमके नरक में जाए के पडत बा ?

राजा के दुःख भरल बात सुन के यमदूत के दिल पसीज गइल और उ कहने की, हे राजन एक बार तोहरे दरवाजा पर से एगो भूखाइल बाभन लौटल रहे एही से तोहके नरक जाए के पडत बा | बस एगो भूखाइल बाभन न खियइले से नरक ! मतलब की कउनो भूखाइल के खाना खियावल केतना बढहन पुन्य के काम ह | इ बात सुन के राजा यमदूत से विनती कइले की हमके बस एक साल के और समय दे दीं जेसे की हम आपन बुरा काम ठीक कर सकी | यमदूत सोच विचार कर के राजा के आयु एक साल और बढा़ दिहले | यमदूत के जइले के बाद राजा इ समस्या के लेके कई ऋषियन के पास पहुचली और सारा बात बता के इ समस्या के निदान पुछली | ऋषि लोग बहुत सोच विचार कईली और फिर राजा से कहली की, हे राजन आप कृष्ण चतुर्दशी के व्रत करीं | और ब्राह्मणों के खाना खिलाई और उनसे अपने अपराध के क्षमा मांगी अगर उ लोग आपके माफ कर देइब त आ आप ए पाप से मुक्त हो सकेली |

राजा रन्ति, जइसन ऋषि लोग कहले रहनी वइसने ही कएली और कृष्ण चतुर्दशी के व्रत रखनी, देश भर के ब्राह्मण के बुला के खाना खिलइली और उनसे अपने अपराध के माफी भी मांग लेहनी | एह तरे राजा अपने ए पाप से मुक्त होके विष्णु लोक में स्थान पइली | तब्बे से हर तरह के पाप से मुक्ति पाए खातिर कार्तिक चतुर्दशी के व्रत प्रचलित हो गइल |


एगो और कहानी के अनुसार भगवान कृष्ण एही कातिक महीना में चतुर्दशी के दिन नरकासुर के वध कर के देवताओ और ऋषियों के ओकरे आतंक से मुक्ति दिलवनी | एकरे साथ ही साथ श्री कृष्ण सोलह हजार कन्याओ के भी नरकासुर के कारागार से मुक्त करइली | एही के उपलक्ष्य में नगर के निवासी पूरा नगर के दिया से सजा के नरकासुर नाम के अँधेरा के दूर होखले के खुशी मनवले | तब्बे से नरक चतुर्दशी के त्यौहार मनावल जाये लागल |